जिंदगी की दशा- दिशा
जिंदगी की दशा- दिशा :
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जिंदगी की एक दिशा होती है, और उसके बहाव का भी एक शऊर होता है।
हम लोग जो सत्तर-अस्सी के दशक में पैदा हुए, उसने दुनिया को जितनी रफ्तार से बदलते देखा, शायद ही किसी और दौर ने ऐसे किसी ने बदलाव देखें होंगे। हमारी सोच से भी आगे बहुत कुछ ऐसा होने लगा जिसे हम स्वीकारने की कोशिश तो कर रहे पर शायद पूरी तरह ढलने में मुश्किल हो रही। इसके साथ हमने अपना समाज भी बदलते देखा। इसका डिस्कोर्स, इसका विचार प्रवाह, इसके लक्षित उद्देश्य पिछले कुछ सालों में जितना बदले है, हमे उसे इस तरह बदलते देखना मुश्किल हो रहा है।
राजनीति भी अब पहले जैसी नहीं रही। अब वो एक क्रोधी, अराजक, बदलाकारी पीढ़ी निर्माण करना चाहती है।। एक ऐसी पीढ़ी जो आंखों देखी पर कम सिर्फ़ सुनी सुनाई या छद्म से दिखाई स्थितियों पर यकीन कर लेती है। जबकि हमारी कल्पनाओं में हम उसे शांत, समृद्ध, सुसंस्कृत देखना चाहते हैं। समाज के सभी पटल पर यह वैचारिक सँघर्ष बदस्तूर जारी है। इस सँघर्ष में, कभी अपने भी धुर विरोधी निकल जाते है, तो कहीं किसी अनजाने कोनो से हमख्याल, हमसाया भी निकल आता है।
ऐसे में हमारी जिंदगी कैसी हो ये हमें ही तय करना है। उसे किस तरह ढालना है कि हमारा मन मस्तिष्क शरीर भावनाएं इच्छाएं सब इस तरह से रहें कि उनके होने से हमें पीड़ा ना मिले। क्योंकि व्यथित मन और शरीर एक स्वस्थ परिवार और समाज कैसे बनायेगा।
अगर ढर्रे पर चल रही जिंदगी में वाकई कुछ बदलाव चाहते है। तो बदलाव खुद से शुरू करना होगा। सुबह सवेरे जल्दी उठिए। थोड़ा वॉक शॉक पर जाइये। ग्रीन टी या लेमन टी पीजिए, मेडिटेशन कीजिए, भिगोए चने का नाश्ता कीजिए, थोड़ी वर्जिश कीजिए। अर्थात वो सब जो खुद के शरीर के लिए जरूरी है।
सोशल मीडिया से दूर, भ्रामक मीडिया, टीवी अखबार से दूरी रखनी होगी। ताकि भ्रमित होने से बचें। अपने काम और ऑफिस में मन लगाकर काम करें। क्योंकि ये हमारी व्यक्तिगत तरक्की का मार्ग बनाता है। गॉसिप, नुक्ताचीनी और क्रोध, गुस्से से दूर रहें। स्ट्रीट फूड, जंक फूड, तेल मसाले के भोजन से बचें। सिगरेट शराब से दूरी रखें। घर से बाहर जाने पर अपना टिफ़िन संग ले जायें, और रात का खाना कोशिश करके घर पर खायें। रात को सोने के पहले की कोई अच्छे विषय की किताब पढ़ें। फ़िर जल्दी सोएं, ताकि जल्दी सुबह उठ सकें।
अब सोचने को ये है कि बदलाव के नाम पर विकसित और उन्नत होती जिंदगी में यही सब आज भी करना है, तो एक समय बाद ऊब होना लाज़मी है।अन्य सब को खुशनुमा जिंदगी जीते देख कुढ़न होना लाज़मी है। पर इसके परे ये भी सोचना होगा कि हमारी जिंदगी हम ही जी रहे। उसके अच्छे होने या बुरे होने के हम ही जिम्मेदार हैं। तो बेहतरी के लिए बदलाव स्वीकार हो तो आगे बढ़े वरना अपनी पुरानी खुशनुमा जिंदगी पर लौट जायें। जहां भविष्य तो निसंदेह बहुत अच्छा नहीं है।
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