Dysmorphia: एक जुनूनी विकार

 Dysmorphia : एक मानसिक विकार     ••••••••••••••••••••••••••••••••••••

डिसमॉर्फिया शब्द से हो सकता है बहुत से लोग परिचित हों। पर नाम के जरिये सिर्फ़ इसकी व्याख्या समझ लेने से ही इसे पूरी तरह समझ पाना मुश्किल है। क्योंकि हम अपनी शख्सियत के साथ जीते हुए अक्सर अनजाने में खुद के साथ भी यही कर बैठते हैं। 

इसे अगर एक बीमारी माना जाए तो गलत नहीं होगा। क्योंकि खुद को खुश रखना, अच्छा दिखना और सबके सामने सबसे बेहतर प्रस्तुत होना सबकी चाहत होती है। और इसके लिए हम ख़ूब प्रयास भी करते हैं। 

पर इस विकार में इंसान ख़ुद से ही नफरत करने लगता है। उसे शीशा देखते हुए खुद से घृणा होने लगती है। वह अपनी शख्सियत की तुलना लगातार दूसरों से करने लगता है और अपनी व्यक्तिगत पहचान छोड़कर दूसरों की तरह बनने के लिए नई नई कोशिशें करने लगता है। ये अपने शरीर और व्यक्तित्व को नापसंद करने संबंधी विकार है।

एक बार एक इंटरव्यू में प्रख्यात भारतीय फ़िल्म प्रोड्यूसर करण जौहर ने ये कबूला था कि वो डिसमॉर्फिया का पेशेंट है। उसे खुद के शरीर से घिन आती है। वो कभी खुद को शीशे में देखना पसंद नहीं करता। यहां तक कि वो स्विमिंग करते समय भी पूल में बिना कपड़ों के comfortable नहीं महसूस करता। वो हमेशा हीरो हेरोइन की तरह accurate figure होने की उम्मीद करता है। 

इस मानसिक विकार के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार होते हैं। जैसे वो ऐसे किसी सामाजिक मौकों पर जाने से बचते हैं जहां उनके व्यक्तित्व संबंधी बातें होने की गुंजाइश हो। ऐसे लोग खुद को अव्यवस्थित समझ कर बार बार व्यवस्थित रखने का प्रयास करते हैं। जैसे कपड़ें सही करना , बाल बनाना या मेकअप दुरुस्त करना। ऐसे लोग अपने व्यक्तित्व के लिए दूसरों से सिर्फ़ सकारात्मक बातें सुनना चाहते हैं। उन्हें डर लगा रहता है कि कोई उनको कुछ अन्यथा ना कह दें।

अब सोचने वाली बात ये है कि इस तरह का व्यवहार पनपता कैसे है ? ? खुद से कोई घृणा कैसे कर सकता है ? ? जबकि इस संसार के सारे झगड़े और बैर इसी वजह से होते हैं कि हर इंसान खुद को ही सर्वश्रेष्ठ समझता है। अपनी बात, अपना व्यक्तित्व, अपना लहज़ा, अपना आर्कषण अपनी वाक्पटुता, अपना व्यवहार श्रेष्ठ, अपना आचरण बेहतरीन जैसे अनगिनत से आत्मविश्वास। जिससे अक्सर सामने वाला खुद को हीन समझने लगता है और उस व्यक्तित्व से दूर होने की सोचता है। क्योंकि दूसरी तरफ उसके भी तो मन में यही श्रेष्ठता का जुनून होता है। 

ऐसे में खुद से घृणा ......? ? ?  ईश्वर से सृष्टि में करोड़ों अरबों प्राणियों को जन्म दिया। सबमें कुछ ना कुछ भौतिक अंतर है। शक्ल सूरत कद काठी शारीरिक सरंचना आदि का। हर कोई अपनी खूबियों के साथ पूर्ण है। अगर कोई विशेष संरचनात्मक कमी ना हो तो सभी जीव जंतु अपने आप में अनूठी प्रतिकृति हैं। ये तो ईश्वर भी नहीं चाहता होगा कि कोई स्वयं से घिन करे। हर विचारपूर्ण व्याख्यान में सबसे पहले यही कहा जाता है कि खुद से प्रेम करना प्राथमिकता होनी चाहिए। क्योंकि जब हम खुद को सम्मान देंगे तभी दूसरा हमारी वैल्यू समझेगा। जब हम खुद को ही गिरा पड़ा महसूस करेंगे तो सामने वाले से सम्मान या attention की उम्मीद कैसे करेंगे। 

ये अवश्य ही एक मानसिक विकार है। पर इसका इलाज डॉक्टर के बजाए हमारे खुद के ही पास ज्यादा है। सबसे पहले स्वयं से प्यार करना जरूरी है। अतिश्योक्ति किसी भी चीज़ की बुरी होती है। अत्यधिक प्रेम घमंड की स्थिति पैदा कर सकता है पर खुद से घिन जैसी स्थिति भी बेहद बुरी होती है।

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