मौन की ताकत
मौन की ताकत : *************
ईश्वर ने हमें वाणी दी है। ताकि हम बोल कर कह कर अपनी बात संवेदनाएं, भावनाओं को प्रकट कर सके। मन में कुछ दबा ना रह जाये इसलिए बोलना जरूरी होता है। पर क्या हर बार बोलना ही जरूरी होता है। क्या कभी चुप्पी का भी उतना ही महत्व होता है। ये समझना जरूरी है।
मौन का अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। दो मिनट की चुप्पी भी व्यवहारिक परिवर्तन ला सकती है। क्योंकि बोलते समय दिमाग काम नहीं करता। जो मन में भड़ास सी रहती है वह सब जबान के जरिये बाहर निकल जाती है। परंतु चुप्पी के समय दिमाग चैतन्य हो जाता है। वह दूसरे की खामियों के साथ साथ अपना भी आंकलन करता है। इस तरह अक्सर अपनी गलतियां भी सामने दिखने लगती है।
मौन की सबसे बड़ी खूबी है कि उसमें focus अच्छा बन पाता है। और यही केंद्रीयकरण सफलता का द्योतक हो जाता है। क्योंकि लापरवाही और अनिच्छा से किया गया काम कभी भी सफल नहीं होता। तो मौन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य focus बढ़ाना होता है। इसके अलावा मौन में एक या दो मिनट का मौन हमें ईश्वर से connect करवाता है। हम उससे connect होकर उसको अपनी बात कह सकते हैं। उसकी राय लेते हैं। और उससे उसका सहारा मांगते हैं। ताकि हम जो भी करें सही हो उसके परिणाम सकारात्मक आएं।
बिना कुछ बोले कुछ शब्द प्रयोग किये बिना भी चुप्पी के जरिये दूसरे तक बहुत कुछ पहुंचाया जा सकता है। हमारे साथ अक्सर ऐसा होता है कि हम किसी को याद कर रहे होते हैं तभी उसका फ़ोन या मैसेज आ जाता है। अर्थात वो ये महसूस कर रहा होता है कि हम उसे याद कर रहे हैं। सामान्यतः संवाद तीन तरह के होते हैं। पहला शब्दों से, दूसरा शारिरिक भाषा, से तीसरा विचारों के जरिये। पहले दोनों माध्यमों में हो सकता है कि सामने वाले को समझने में भूल हो जाये पर तीसरे विचारों के जरिये भावनाओं का आदान प्रदान सबसे अच्छा होता है। और इन तीनों में सबसे ज्यादा पॉवरफुल mind communication ही होता है क्योंकि इसका असर गहरा होता है और ये दूर रहकर भी हो सकता है। क्योंकि जरूरी तो नहीं कि हम जिससे कुछ कहना चाह रहे वो हमारे करीब ही हो।
और ये विचारों द्वारा संवाद तभी होगा जब हम मौन की स्थिति में होंगे। जब हम दिल से उनको याद करके कुछ कह रहे होंगे। वो vibes उन तक पहुंचेगी ज़रूर। इसलिए अगर कहा जाए तो मौन एक महत्वपूर्ण साधना है जिसमें हम तो बेहतर होते ही है। हमारी सोच , हमारे रिश्ते और हमारा वातावरण भी सुधरता है। क्योंकि किसी भी चीज़ को बेहतर बनाने के लिए आंकलन बहुत ज़रूरी है। और वह सिर्फ मौन में ही हो सकता है।
इसलिए पूरे दिन में हर घण्टे के बाद दो चार मिनट का मौन रखकर मन में कुछ सोचते रहना चाहिए। ये सोच सकारात्मक रहे इसके लिए खुद को केन्द्रबिन्दु में रखना चाहिए। जिससे अपनी हार, गलतियां, व्यवहारिक दोष, भिन्नता आदि भी प्रत्यक्ष दिखें। ये एक बेहतर व्यक्तित्व बनने की ओर एक कदम हो सकता है।
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