कितने ही बसंत


कितने ही बसंत : 

••••••••••••••••••

कितने ही बसंत देखे होंगे हमने

उम्मीदें अभी भी बरकरार हैं

यकीनन कल से आज बेहतर है

बस यही तो ज़िन्दगी से प्यार है

खुशियाँ चलकर मुझ तक आई हैं

तभी तो मुस्कुराहटों की भरमार है

क्या खूब जी रहे हम मस्त होकर

खूबियों संग जीने की धुन सवार है

पलों को दिनों में बदलते देख रहे

तभी हर दिन ख़ुशगवार रविवार है

महीने चलते हुए साल बन रहे हैं

और सालों पर ख़ुमारी सदाबहार है

हथेली की लकीरें कुछ भी कह रही

उनसे परे जिंदगी बेहद शानदार है

बस सुकूं बिखरा है मेरे हर ओर

ये मेरी भाव भंगिमाओं के उद्गार हैं

ख़ुदा का हर बार ढेरों शुक्रिया

कि ज़िन्दगी में बिखरा श्रृंगार है

          ~ जया सिंह ~

◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆













Comments