मन की भड़ास
मन की भड़ास :
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अमूमन मन की भड़ास निकालने को गलत माना जाता है। क्योंकि हमारे बड़े बुजुर्गों ने हमेशा से हमें यही सीखाया है कि अगर कोई कुछ कहे और अपने को अच्छा न लगे तो चुप हो जाओ पर प्रतिउत्तर मत दो। बस यही बात समझकर हम अक्सर मौके पर कुछ नहीं कहते और बाद में ये सोच कर घुटते है कि काश उस समय जवाब तो दिया होता।
हालिया कुछ व्यज्ञानिक रिसर्च ये कहते हैं कि कुछ बुरा लगने पर हाल के हाल प्रतिउत्तर दे देने से खुद को सम्भलने का मौका तुरंत मिल जाता है। ये अपनी खुद की मानसिक सेहत के लिए भी जरूरी है। मानते है कि दूसरे को भला बुरा कहना गलत होता है। पर अपने मत की भिन्नता को तुरंत सामने रखना बाद में होने वाली ग्लानि के लिए अच्छा होता है। बाद में हम खुद को कोसने लगते है कि उस समय क्यों नहीं बोला जब बोला जाना जरूरी था।
मन की भड़ास निकालना जरूरी है इसे कुछ बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है।
★ भावनाओं के नियंत्रण में सहायता : अक्सर झुंझलाहट मन को शांत कर देती है। ट्रैफिक में जाम में अगर फंसे हो तो अपने आप मन में झुंझलाहट पैदा होती है। पर ये उस समय की त्वरित भावनाओं की प्रतीक होती है। ये कोई परमानेंट वाला गुस्सा नहीं होता। स्थिति बदलते ही ये अपने आप शान्त हो जाता है। पर उस समय अगर ये झुंझलाहट बातों या खीज के जरिये निकलती है तो बाद में मन हल्का रहेगा।
★ जुड़ाव बढ़ता है : कभी कभी जब हम विपरीत परिस्थितियों से गुजर रहे होते हैं तब चुप्पी साध लेने से बेहतर है कि उसे व्यक्त करें । क्या पता सामने वाला भी कुछ कहे जाने की उम्मीद कर रहा होता है। ये दो लोगों के बीच जुड़ाव का कारण बन सकता है। बशर्ते बोलते समय शब्दों का ध्यान रखा जाए।
★सहनशक्ति बढ़ना : जब कोई अपनी बातों से असहज कर रहा हो तो उसे भी प्रतिउत्तर देना वाजिब हो जाता है। इस प्रक्रिया में अपने दर्द की संवेदनशीलता कम हो जाती है। क्योंकि बाद में मन उसी में गूंथता नहीं रहता है।
★प्रदर्शन बेहतर होता है : जो लोग मौके पर अपनी बात कहने का हुनर रखते हैं। वह बाकी introvert लोगों की अपेक्षा अधिक मुखर होते हैं।उनमें झिझक कम होती है।और वो खुद को सकारात्मक रखने के लिए ऐसा करते है। नकारात्मकता से दूर रहते हैं
★ ईमानदारी होना : जो व्यक्ति मौके पर कह देता है वह अन्य की अपेक्षा अधिक ईमानदार होता है। क्योंकि जो नहीं कहता वह अपनी भड़ास कहीं और किसी तरीके से निकालता है। कहीं और जाकर कुछ और कहता है। इसलिए उसी समय अपनी नापसंदगी जता देना बुरा नहीं है।
★ कड़े शब्दों से बचना होगा : ,बस सबसे जरूरी बात ये की विरोध जताते समय शब्दों का ध्यान रखना होगा। कत्तई ऐसे शब्द नहीं बोलने होंगे तो रिश्ते खराब कर दें सौम्यता और सरलता से अपनी बात कहनी होगी। ताकि हमारा मत भी रजिस्टर हो जाये और किसी को बुरा भी ना लगे।
इसलिए भड़ास निकालना ज़रूरी होता है क्योंकि मन की मन में रहने से अंदर ही अंदर घुटन बढ़ती रहती है। जो कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती है। कहिए मगर प्यार से.....😊
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