स्त्री और उसके बदलाव की आवश्यकता
स्त्री और उसके बदलाव की आवश्यकता : ••••••••••••••••••••••••••••••••••••
भाग -2 , पिछले लेख में गतांक से आगे पढ़ें.......!! ~~~~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
स्त्रियों पर चर्चा में ये भी देखा जाना चहिते कि – जब आर्थिक तंगी ने घर परिवार और समाज को मजबूर किया, तब महिलाओं के कामकाजी जीवन को स्वीकार किया गया। वरना सदियों से स्त्रियों को "घर की लक्ष्मी" बताकर उन्हें घर की चारदीवारी में कैद रखा गया था। आज महिलाएं दफ्तरों में हैं, स्कूलों में हैं, फ़ैक्टरियों में हैं, सड़कों पर हैं – और इस उपस्थिति ने उनके भीतर एक नया आत्मविश्वास पैदा किया है। उनकी खुद की एक पहचान बन पाई है। वे सिर्फ़ कमाने वाली नहीं बनीं, बल्कि देखने लगीं कि दुनिया कैसी है – कैसे कुछ पुरुषों की निगाहें निगलने को बेताब हैं, तो कहीं वही निगाहें प्रेम से भरी हुई हैं। इन दोनों अनुभवों ने महिलाओं की सोच, समझ और निर्णयों को प्रभावित किया। उसने अपने अस्तित्व को नए सिरे से परिभाषित करना शुरू किया।
स्त्री की इस बाहरी छवि के परिपेक्ष्य में ये भी समझना होगा कि समाज मिलकर तय करता है कि स्त्री के साथ हमारा पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन कैसा होगा। एक ऐसा समाज जो पूंजीवाद के आधार पर जीवन को गढ़ रहा, वह दिनचर्या और जीवनी को जटिल और विषाक्त बना देता है।
फिर व्यक्ति – चाहे वह स्त्री हो या पुरुष – उस ज़हर से बचने के लिए कभी विद्रोह करता है, कभी पलायन करता है, और कभी ऐसे निर्णय लेता है जो समाज की आँखों में अपराध होते हैं, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर ‘उद्धार’ या ‘न्याय’। तो सवाल उठता है – क्या ऐसी कोई सामाजिक व्यवस्था संभव है जो मानव जीवन को स्वस्थ, समृद्ध, समान और संतुलित बना सके ? ?
दर्शन जगत में अल्पकालीन प्रयोगों ने ये बातें साफ़ कर दीं, कि इस दुनिया में सुंदरतम जीवन संभव है और इस सुंदर जीवन का सृजन हमें ही करना है, इसके लिए कोई मसीहा नहीं आएगा।
यहाँ एक बात पर गौर किया जा सकता है कि समाज में जो समृद्ध है पैसे वालें हैं, ऊंचे ओहदे वाले हैं वह चाहे कितने भी चरित्रहीन क्यों न हो, उसे प्यार और सम्मान मिलता है। लेकिन अगर कोई चरित्रवान हो, नैतिक हो, पर संपत्ति या ओहदा न रखता हो, तो उसे अक्सर उसे समाज अनदेखा कर देता है।
अब इस पर पुनः विचार होना चाहिए कि स्त्रियों में दिखाई देने वाला बदलाव क्या सच में धर्म, संस्कृति और परम्परा की कमज़ोरी है या एक व्यापक सामाजिक बदलाव की दिशा में चल पड़ने का संकेत !
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