संघर्ष करती स्त्रियाँ

 संघर्ष करती स्त्रियां : 

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संघर्ष करती स्त्रियाँ हमेशा ही

आंखों की निजता छोड़ बाहर निकलती है...

स्त्री होने के दायरे दहलीज तक हैं

ये क्यों कर सामाजिक परंपराएं कहती हैं

पीड़ा को स्वीकार करती स्त्रियां भी

घर की बेड़ियों को बंधन नहीं मानती

बाहर निकलने वाली स्त्री के पीछे

कोई दूसरी अंदर बैठी एक स्त्री ही है

ये हर घर की चारदीवारी पहचानती है

किसी स्त्री की समझदारी अमूमन 

क्यों चालाकी कही जाती है....

और गर सहज और सामान्य सी रहे

 तो बेवकूफ़ उपाधि से नवाजी जाती है...

क्यों उसके संघर्ष की तरह लोगों की

शिकायतों की फेहरिस्त खत्म नहीं होती....

एक उसकी उम्र ही है जो 

बस यूँ ही बेवज़ह कटती जाती है...!!

     ~ जया सिंह~

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