स्त्री और उसके बदलाव की आवश्यकता

स्त्री और उसके बदलाव की आवश्यकता : 

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भाग -1

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वर्तमान में महिलाओं से सम्बंधित बहुत सी घटनाएं मीडिया व सोशल मीडिया पर तैर रही कि एक महिला ने अपने प्रेमी के लिए पति की हत्या कर दी, दूसरी ने प्रेमी के लिए अपने पति को छोड़ दिया, और तीसरी, उस युवक के साथ चली गई जो उसकी बेटी का होने वाला पति था।

इन घटनाओं पर तंज कसते हुए बहुत सी बातें कही जा रही और  चुटकुले भी गढ़े जा रहे।  रीलें बनाई जा रही हैं और एक नई तरह की "स्त्री विरोधी संस्कृति" पनप रही है। साथ ही, यह मांग भी उठने लगी है कि हमें अपनी संस्कृति, तहजीब, धर्म और परंपरा को और अधिक मज़बूती से थामने की ज़रूरत है, जिससे समाज में ऐसा पतन न हो।

लेकिन ज़रा ठहरिए और इस तस्वीर को पलटकर दूसरी तरफ से भी देखिए। ये घटनाएँ जिनके पीछे महिलाओं की ‘दुस्साहसिकता’ को लेकर आलोचना हो रही है, क्या पुरुषों ने यही सब कुछ सदियों से नहीं किया ? ? क्या औरतों को त्याग कर पुरुषों ने समाज में अपना रुतबा नहीं बनाए रखा ? क्या पुरुषों की पत्नियों से बेवफाई, दूसरी शादी, प्रेमिकाओं के लिए परिवारों का त्याग ये सब नहीं किया कि इन पर भी तंज कसा जा सके। 

पुरुष अगर किसी स्त्री को छोड़ दे तो वह ‘स्वतंत्र’, ‘आत्मनिर्भर’, ‘साहसी’ माना जाता है। लेकिन जब स्त्री वही करे, तो वह ‘चरित्रहीन’, ‘स्वार्थी’, ‘संस्कृति-विरोधी’ करार दी जाती है। सवाल यह नहीं कि इन स्त्रियों ने जो किया वह सही था या गलत – सवाल यह है कि उनके साथ दोहरे मापदंड क्यों अपनाए जाते हैं ? ? क्योंकि स्त्री अगर अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बाहर निकलती है तो घर की जरूरतों के लिए भी। हर स्त्री सिर्फ़ असंतुष्टि के चलते ही घर की दहलीज नहीं पर करती। 

इसलिए  स्त्रियों की ‘दुस्साहसिक’ कहानियों से सबक लेकर समाज की सामूहिक चेतना की समीक्षा होना जरूरी है। जरूरी है कि हम इन घटनाओं को केवल ‘मज़ाक’, ‘चुटकुले’ या ‘मोरल जजमेंट’ तक सीमित न रखें, बल्कि गहराई से सोचें – कि समाज कैसे बदल रहा है, क्यों बदल रहा है, और इस बदलाव में हमारी भूमिका क्या है।

अब अगर कुछ महिलाएं बाहर निकलकर अपनी असंतुष्ट जिंदगी में अपने प्रेम को चुन रही हैं, पुराने रिश्तों को छोड़ रही हैं, तो यह केवल व्यक्तिगत कहानी नहीं है – बल्कि यह सामाजिक बदलाव का संकेत भी है। समाज बदल रहा है और हर बदलाव संघर्ष से गुजरता है।

अक्सर कहा जाता है कि विकास एक योजनाबद्ध प्रक्रिया है। लेकिन क्या बस इतना ही सच है.......?  ? 

इस व्यवस्था में समाज की क्या भूमिका है ये अगले लेख में वर्णित है पढ़ें और विचारें ............🙏

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