पुरुष और महिला का संबंधों का मनोविज्ञान

पुरुष और महिला का सम्बंद्धों का मनोविज्ञान : 

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 पुरुष और महिला अपनी अपनी प्रवृति और स्वभाव के अनुसार संबंधों का वहन करते हैं। सामान्यतः पुरुष थोड़ा कड़े मन के माने जाते हैं जबकि महिला नरम। फिर भी  संबंधों को दोनों ही निभाते हैं। पर दोनों के सम्बंद्धों को निभाने का जरिया अलग अलग होता है। जरिया अर्थात मन से, तन से, मस्तिष्क से या दिल से। क्योंकि जिस जरिया को अपनाएंगे रिश्तों की गहराई और उम्र उसी अनुसार तय होगी।

सामान्यतः पुरुष रिश्तों को देह या तन से निभाते हैं। वो उसे दिल और मस्तिष्क तक नहीं ले जाते हैं। उनके अनुसार ये दोनों कमज़ोर होने का कारण बनते हैं जबकि पुरुष को खुद को मजबूत दिखाना होता है। वह ये दिखाना चाहता है कि रिश्तों में चोट उसे तोड़ती नहीं है। जबकि इससे उलट स्त्री रिश्तों को दिल से निभाती है। उसमें दिमाग नहीं लगाती। उनके लिए रिश्तों में देह भी महत्वपूर्ण नहीं। क्योंकि देह उम्र के साथ बदलती है । पर सम्बन्द्ध में भाव चिरनिरन्तर रहते हैं।

इसलिए यदि रिश्तों में दिल दिमाग देह का संतुलन बना कर चला जायेगा तभी रिश्ते तटस्थ होएंगे। उनमें मनमुटाव की संभावनाएं कम रहेगी। रिश्तों से जुड़े कोई भी निर्णय लेते समय सिर्फ़ मन की ही नहीं सुनी जानी चाहिए। बल्कि देह और दिमाग को भी सुना जाए। दिल और दिमाग तो किसी निर्णय को बोली या भाव भंगिमा के जरिये परिभाषित करते ही हैं पर देह भी अपनी भाषा में बहुत कुछ कहती हैं। जैसे अगर कोई निर्णय किसी दबाव में लिया जा रहा जिसे पूरा करने के लिए देह को अति संघर्ष करना पड़ रहा तो अंत में दिल और दिमाग भी उस निर्णय की प्रतिकूलता भुगतता है। इसीलिए बैलेंस करके स्थितिअनुसार सबमें सामंजस्य बनाकर ही रिश्तो को संभालना और निभाना चाहिए। जब ईश्वर ने सोचने के लिए दिमाग, महसूस करने के लिए दिल और उसे execute करने के लिए देह दी है तो सबको अपने निर्णय में शामिल करना चाहिए। जिससे सही गलत की समझ के साथ आगे बढ़े।

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