जिंदगी जीना सीखो

 जिंदगी जीना सीखो : 

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ज़िन्दगी को सही मायने में कोई समझ ही नहीं पाया। तभी तो हर  कोई उसे जैसे कोई कोर्ट केस समझ  लेता है....हर बात और स्थिति को दलीलों, तारीखों और फैसलों के तराजू में तौलने की कोशिश करते हैं। सुबह से शाम तक बस खुद को सही बताने का प्रयास, यही कोशिश कि हमने जो कहा वही अंतिम सत्य है। क्योंकि हम ही ज्ञानवान हैं। इसलिए दुनिया हमें गंभीर और विलक्षण माने। 

हम ये भी सोचते हैं कि चिंता करने से ही हमें किसी समस्या या स्थिति का सही समाधान मिलेगा, जैसे सिर पर बोझ रखने से मंज़िल पास आ जाएगी... ? ? ये सब सिर्फ़ हमारी सोच है। इसका परिणाम हमेशा मनमाफ़िक नहीं आता। अलबत्ता हम उलजुलूल की चिंताओं में डूबकर अपना आज का सुख खो बैठते हैं।

पर हकीकत ये है कि जो ज़िन्दगी को हल्के में लेते हैं, वही ज़िन्दा रहते हैं। बाकी तो बस 'जिंदा' दिखने का ढोंग कर रहे हैं। क्योंकि उलझनों में उलझ कर लोग जिंदगी को जीना ही भूल जाते है। जीवन के वह बहुत से पल जो हमें खुशी दे सकते हैं। उन्हें किसी और चिंता में गंवा बैठते हैं। हम भूल जाते हैं कि ये जीवन एक किराए का कमरा है — जिसकी चाबी किसी और के पास है। न उसे ज्यादा सजाने का फायदा, न ज्यादा दुखी होने का मतलब। फिर भी हम अपने ग़मों को फ्रेम में टांगकर दूसरों को दिखाने की होड़ में लगे रहते हैं।

 ये तय भी है और पक्का भी कि यहां से कोई बचकर नहीं जाने वाला पर अगर जीते जी मुस्कुरायेंगे, तो शायद ज़िन्दगी हारते हुए भी जीत जाएंगे।

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