उपहार के साथ प्यार
उपहार के साथ प्यार :
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जब भी हम किसी के घर जाते हैं तो अपने सामर्थ्य के अनुसार कोई अच्छा सा उपहार या मिष्ठान ले जाना नहीं भूलते। यह तरीका होता है अपने प्रेम और सम्मान को व्यक्त करने का। देना सिर्फ़ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि दिल से दिल तक का रिश्ता होता है। चाह यही होती है कि जो भी उपहार दिया जाए, वह हमारे शुद्ध भाव और सम्मान को दर्शाए। सत्य तो यही है कि देने का असली सुख तभी मिलता है, जब हम अपने अंदर के भाव को स्वच्छ रखते हैं। उपहार की कीमत नहीं, बल्कि उसमें छिपा प्रेम और उदारता मायने रखती है। भगवान भी देने वाले की हैसियत नहीं, बल्कि उसके हृदय का भाव देखते हैं। एक छोटा-सा उपहार भी अगर सच्चे मन से दिया जाए, तो वह अनमोल बन जाता है।
लेकिन जब बात खुद के लिए कुछ खरीदने की आती है, तो हम अक्सर उदारवादी बन जाते हैं। मिष्ठान हो या कपड़े बेहद पसंद होने के नाते चुने जाते हैं। होना ये चाहिए कि भले ही अपने लिए सादे कपड़े चुन लिये जाएं, लेकिन किसी को कुछ देते वक्त उससे सम्बंद्धों की गहराई और अपनी हैसियत के अनुसार सबसे बेहतर देने की कोशिश करनी चाहिए। ये भी सोचना चाहिए कि ईश्वर ने हमें उतनी हैसियत दी है कि हम किसी को कुछ देने के काबिल हैं।
उपहार एक विचार की तरह होता है जो अपने आप ही अच्छे बुरे भाव को प्रदर्शित कर देता है। कमतर या ज्यादा होना मायने नहीं रखता। शुद्ध और प्रेमभरे विचार के साथ एक सामान्य सा तोहफ़ा कीमती बन जाता है। इसलिए हमेशा उपहार के साथ प्यार भी जोड़ना चाहिए।
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