आंसू बहने दें

 आंसू बहने दें :

•••••••••••••••••



आँसूओं को कमजोरी की दृष्टि से देखा जाना सर्वथा गलत है । क्योंकि आँसू ख़ुशी और गम दोनों के होते हैं।।आंख में कचरा चला जाये तो भी आँसू आते है। तो हर बार ये कमज़ोर होने की निशानी नहीं है। ये मजबूत होने का प्रतीक तब बनता है जब हम किसी अन्य का सहारा ना लेते हुए अकेले में इनके जरिए अपना दुख बाहर निकालते है। कहा सुना दुख बिना वजह ही दस लोगों तक अलग अलग रूप में पहुंचता है। जबकि खुद के साथ बिताता दुःख अपने ही तरीके से हमारे पास रहता है। ऐसे में ये आँसू तब मजबूती के कारण बनते हैं जब वो हमें हल्का करने के लिए बहते हैं। खुशी के आंसू हमारे अंदर के उत्साह को प्रकट करते हैं। जिसे हम अपनी शरीर की भाषा द्वारा प्रस्तुत नहीं कर पा रहा होते हैं। 

विदेशों में नए नए चलन के साथ एक पीड़ा साझेदार उपलब्ध कराया जा रहा। जो दुःख, अनकही सुन कर खुद तक रखता है पर उसके साथ कहना सुनना मन हल्का कर देता है। अमूमन किसी अपने से कुछ share करो तो वह दो की चार कहकर बात का बतंगड़ बना देता है। पर ये professional listeners सिर्फ सुनते हैं अपनी सुनने का दबाव नहीं बनाते। 

इन आँसूओं का ईश्वर के साथ का रिश्ता बहुत ही विचित्र है। जब यही आँसू ईश्वर के समक्ष निकलते तो वह पावन हो जाते है। उस समय ये आँसू प्रभु के चरण पखारने का काम करते हैं। जो प्रभु को छू कर मोती में बदल जाते है। उस समय वो आँसू बिन कुछ कहे प्रभु से मन की हर बात कह देते हैं। उनके नमक में हमारी वेदना का सार छिपा होता है। जिसे प्रभु अपने चरणों पर स्पर्श करते ही पहचान जाते है।प्रभु के समक्ष तो आंसू खुशी में भी निकलते हैं। उन्हें धन्यवाद कहने हेतु। प्रभु हाव भाव की भाषा समझते है। इसलिए जब भी हम प्रभु के समक्ष आँसू गिराते है। वह उसका मूल निवेदन समझ जाते है। 

आँसू मानवीय संवेदनाओं का अभिन्न अंग है। इसलिए इसे सहर्ष स्वीकार कर इसके आने या रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए। 

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆


Comments