पूंजीवाद और स्वार्थ के बढ़ता चलन
पूंजीवाद और स्वार्थ के बढ़ता चलन :
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यह ऐसा समय है जब समाज में इंसानियत और तर्क की बात करने वाले हार रहे हैं और पूंजीवादी युद्धवादी राष्ट्रवादी सोच वाले तेज़ी से सारी दुनिया में अपने पैर पसारते जा रहे हैं ।
ये ऐसा समय भी है जब सारी दुनिया को एक मानने वाले बेईज्ज़त किये जा रहे हैं और अपने मुल्क को काल्पनिक महान बनाने के नारे लगाने वाले लोग सत्ता के सर पर बैठ गए हैं,
ये वो दौर है जब इंसानियत की बात, सहनशीलता और तर्कशीलता भयानक षड्यंत्र से जुड़े शब्द माने जा रहे हैं। सब सिर्फ़ खुद तक ही सिमट कर रह गए है। दिखावा है तो बस झूठी देशभक्ति का। दूसरों का ख्याल किये बिना अपना ऐश ओ आराम बढ़ाते जाने को विकास मान लिया गया है,
ऐसे समय में किस तरह का समाज और कैसी राजनीति लोकप्रिय होगी ये सोचिये...... ? ?
कोई इंसान आपसे कहता है कि तुम्हारा धर्म सबसे अच्छा है। तुम्हारी जाति सबसे ऊंची है। ऐय्याशी से जीना और धर्म के लिए किसी बात की परवाह ना करना सबसे अच्छा जीवन है। तो चलो आओ अपने प्रतिद्वंदी धर्म वाले को मार दें। आओ पड़ोसी मुल्क को अपने कब्जे में लेने की कोशिश में उसका दमन कर दें।
दूसरी तरफ एक दूसरा इंसान है जो आपसे कहता है कि सिर्फ आपका धर्म ही सबसे अच्छा नहीं है । बल्कि दुनिया के सभी धर्म एक जैसे हैं। और सभी धर्म पुराने और अपने आप में संपूर्ण होते हुए भी अधूरे हैं।क्योंकि धर्म ज्ञान की पराकाष्ठा है और ज्ञान अंतहीन होता है। इंसान को नई जानकारियों और खोजों से खुद के दिमाग को तरोताजा बनाने में लगे रहना चाहिए ।
वह आपसे यह भी कहता है कि जातिगत वर्गीकरण एक अन्याय है । क्योंकि सब मानव एक समान है। रंग शक्ल बुद्धि और शारीरिक संरचना अलग होने से वो भिन्न नहीं हुए। और ऊंची हैसियत जैसा कुछ नहीं होता। जो कि सार्वभौमिक भी नहीं है। इस सोच कल तुरंत छोड़ना ही सही होता है।
वह इंसान यह भी कहता है कि आपकी ज़रुरत के लिए तो प्रकृति के पास बहुत कुछ है। लेकिन किसी भी ऐयाशी के लिए प्रकृति के पास संसाधन नहीं है। प्रकृति ने सब कुछ सबके लिए बराबर दिया है। और अगर आप दुसरे से ज्यादा के मालिक बनने की कोशिश करेंगे तो आप दुसरे का हक़ छीन लेंगे। और इससे युद्ध होगा।
इसलिए सादगी से रहिये। तो आप पहले वाले इंसान को चुनेंगे या दुसरे वाले इंसान को ....? ?
अगर आप पहले वाले इंसान को चुनते हैं तो ये समझिए कि वह इंसान आपको नकली धर्म दे रहा है। वह और उसकी सोच पृथ्वी को नष्ट कर देगी। और अनावश्यक विस्तार की मंशा से वह दुनिया को युद्ध की तरफ ले जा रहा है। लेकिन उसे ही पसंद करने का कारण ये है कि वह वो कह रहा जो हम सुन कर खुश होते हैं।
जबकि दूसरी ओर वह दूसरा इंसान आपकी अय्याशियाँ कम कर के आपको दूसरों के लिए जीना सिखा रहा है। दूसरा इंसान पूरी दुनिया की बात बता रहा है। लेकिन आप दुसरे इंसान को अपना नेता या आइडियल नहीं चुनेंगे।
जीजस को सूली, गांधी को गोली, सुकरात को विष इस बात का सबूत है कि अच्छा सोचने और बोलने वाले को ये दुनिया कभी सहर्ष नहीं स्वीकार करती।
जबकि हत्यारे, दंगाई, बलात्कारी सोच वाले आज लोगों के प्रिय बने बैठे हैं। राम रहीम, आसाराम बापू जैसे ढोंगी संत अपने तथाकथित भक्तों के कारण ऐश कर रहे। जो अपना सिर्फ़ आज का सुख चाहते हैं। वो ही ऐसे सोच वालों के पीछे भागते हैं। क्योंकि इस तरह की सोच वालों को की सोच वालों को समाज को आगे बढाने की फ़िक्र नहीं होती है। ऐसे लोग दुनिया के भूखों और पर्यावरण के लिए अपनी अय्याशी में कटौती के लिए तैयार नहीं होते।
यही असल वजह है सभी अच्छी विचारधाराओं की हार की। और मक्कारों और लुटेरों की जीत की।
लेकिन फिर भी, दुनिया को बेहतर बनाने वाले वह चंद लोग ....ज़रा भी मायूस ना होना। तुम हारे नहीं हो....न कभी हारोगे.....तुम में से होकर दुनिया की बेहतरी की उम्मीद बहती है। इसे बहने देना। यह उम्मीद तुम में से गुज़र कर नयी नस्लों तक का सफर करेगी। ये दुनिया गर बचेगी। तो उसे बचाने की कोशिश करने वालों में तुम शुमार होगे।
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