मेरे के अहम का वहम ………… !
हम जब इस संसार में आते हैं हमें सब कुछ बना बनाया मिलता है। माता पिता ,परिवार ,समाज, परिवार में आमदनी का धंधा , संस्कारों को आगे बढ़ाने का रास्ता आदि। ये सब उस परमपिता की कृपा है।  फिर भी हम  उसे सिर्फ अपना मानते हैं।  जबकि उसके निर्माण में हमारा कोई योगदान नहीं  होता। मेरे बच्चे , मेरा धंधा ,मेरा घर, मेरा परिवार ,मेरा नाम  ,मेरी प्रतिष्ठा ,मेरा मान , आदि कई तरह के अहम मन में लिए इंसान जीता रहता हैं। यही अहम उसे स्वार्थी और स्वकेंद्रित बना देता है। ये सब कुछ ईश्वर की देन  है जो पीढ़ी दर पीढ़ी एक दूसरे के लिए हस्तांतरित होती रहती हैं। एक बार दिल लगा कर सोचें तो सिर्फ अपने द्वारा किये जा रहे काम के अलावा आप के पास आप का क्या है ? नाम ,परिवार, संस्कार सभी कुछ आप को विरासत में मिलता है और पुरानी पीढ़ी को भी ये अपने आप ही मिला है। हम ये सोचते है की जो कुछ हमारे आस -पास है सब हमने बनाया है। और इसी लिए हम सभी में अपने पराये का भेद डाल देते हैं जो दूसरे कई तरह के द्वेषों को जन्म देता हैं। जब कभी भी दो लोग मेरे तेरे के अहसास के बीच अपना रिश्ता बढ़ाएगे वह कभी भी मजबूत नहीं होगा। इस सत्य को स्वीकार करना होगा कि ये सब कुछ उस ईश्वर की ही कृति हैं। और हम उसके हिस्से इस लिए बनाये गए है ताकि हम उसे आगे चला सकें। हम सिर्फ उसके रक्षक भर है। ये भी आप मानते है कि जो भी कुछ होता है उस में भी उसी की मर्जी होती है ऐसे में आप खुद को सर्वेसर्वा कैसे मान सकते हैं। आप वही कर रहें है जो उसने आप के लिए तय किया है। आप के आस पास जो भी लोग हैं वह भी उस चक्र के हिस्से है जो परमात्मा ने आप के इर्द गिर्द बनाया है। ये चक्र आप को सुरस्क्षित और अपनों के बीच होने के अहसास के लिए बनाया गया हैं। पत्नी ,भाई ,बहन , पिता माता , और सभी दोस्त , रिश्तेदार  ये उसका आप के लिए एक तोहफा है  जिस की वजह से आप खुद को समाज के बीच हँसते खेलते समय गुजरने वाला बना पाते हैं। जिस दिन आप ये समझ जाएंगे कि आप सिर्फ एक कर्मचारी भर है जो उस परमपिता के कार्यालय में उसकी इच्छानुसार काम कर रहें है। सारी  समस्याएं अपने आप खत्म हो जाएँगी । खुद को हमेशा कृतज्ञ रखें जिस से उस ईश्वर को भी आप पर दया रखनी ही पढ़ें। क्योंकि ये तो आप भी मानते ही होंगे कि जो नरम है वही दया का पात्र बन सकता हैं।  

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