जिसका काम उसी को साझे …………!
आज के समाचार पत्र में एक आलेख छपा है जिसमें विज्ञापनों में महिलाओं की बेहतर होती स्थिति को दर्शाया गया है। ये साबित किया गया है कि आज विज्ञापनों के जरिये महिला को एक मजबूत मुकाम पर खड़ा पाया जा रहा है। उन कार्यों को करते दिखाया जाना जिस पर एक समय पुरुषों का अधिपत्य था एक सार्थक कोशिश है। पर एक बात जो अच्छी नहीं लगी वह है स्त्री होने के नैसर्गिक अधिकारों के प्रति समाज का नकारात्मक रवैया। एक विज्ञापन में उच्च महिला अधिकारी अपने मातहत पुरुष कर्मचारी को कार्य दे कर घर आती है और पति का मनपसंद खाना बना कर उसे कॉल कर के जल्दी आने को कहती है तब पता चलता है कि वह कर्मचारी कोई और नहीं उसी महिला का पति है। इस विज्ञापन में जिस बात का विरोध किया गया वह था थकी हारी अधिकारी महिला का घर आ कर खाना बनाना। मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ गलत दिखाया है।
मैं एक बात मानती हूँ कि पुरुष यदि पाक कला के लिए रुझान रखता है तो वह ज्यादातर व्यावसायिक कारणों से होता है। यदि परुष शेफ होते हैं तो वह बड़े होटल्स या रेस्टोरेंट्स में ही कार्य करने के लिए व्यंजन पकाते हैं। जबकि एक औरत का खाना पकाना पूरे परिवार की आत्मा और मन दोनों की संतुष्टि के लिए होता है। माँ के हाथ के खाने का स्वाद बड़े से बड़ा होटल भी नहीं दे सकता और फिर अपने परिवार की पसंद नापसंद उनकी इच्छा का मान रख कर पकाया खाना निः संदेह स्वादिष्ट ही होगा। ऐसे में औरत से खाना बनाने का अधिकार छीन लेना कि वह दफ्तर में कार्य करती है ये गलत है। औरत के मन से खाने का स्वाद निकलता है न की उसके हाथों से। अपने परिवार के लिए बनाये खाने में मसालों के साथ प्रेम भी डाला जाता है जिस से उसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। यह आप को व्यावसायिक रूप से पके होटल के खाने में कहाँ आएगा। कुछ चीजों और कार्यों का बटवारा यूँ ही नहीं किया गया है। ये सब औरत और पुरुष की शारीरिक बनावट के आधार पर किया गया है। औरत का मन पुरुष के मुकाबले ज्यादा कोमल होता है ,औरत ज्यादा अहसास से परिपूर्ण होती है , औरत घर पर रहकर परिवार और बच्चो की बेहतर कद्र कर सकती है आदि आदि। ये कुछ कारण है की औरत को घर की रानी कहा जा सकता है।क्या हुआ जो एक कामकाजी औरत ने घर आ कर अपने पति की पसंद का खाना पका लिया। ……। कम से कम इस से दोनों के बीच प्यार तो बढ़ा। आप खुद सोचें की बच्चे को जन्म देने की जिम्मेदारी के लिए भी अगर विवाद हो तो क्या उसे भी पुरुष को सौंप दिया जाएगा ? नहीं हो सकता क्योंकि ये बटवारा ईश्वर ने ही कर दिया है। इस लिए जिसका काम उसी को साझे , दूजा करें तो घंटा बाजे वाला मुहावरा सही बैठता है।
आज के समाचार पत्र में एक आलेख छपा है जिसमें विज्ञापनों में महिलाओं की बेहतर होती स्थिति को दर्शाया गया है। ये साबित किया गया है कि आज विज्ञापनों के जरिये महिला को एक मजबूत मुकाम पर खड़ा पाया जा रहा है। उन कार्यों को करते दिखाया जाना जिस पर एक समय पुरुषों का अधिपत्य था एक सार्थक कोशिश है। पर एक बात जो अच्छी नहीं लगी वह है स्त्री होने के नैसर्गिक अधिकारों के प्रति समाज का नकारात्मक रवैया। एक विज्ञापन में उच्च महिला अधिकारी अपने मातहत पुरुष कर्मचारी को कार्य दे कर घर आती है और पति का मनपसंद खाना बना कर उसे कॉल कर के जल्दी आने को कहती है तब पता चलता है कि वह कर्मचारी कोई और नहीं उसी महिला का पति है। इस विज्ञापन में जिस बात का विरोध किया गया वह था थकी हारी अधिकारी महिला का घर आ कर खाना बनाना। मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ गलत दिखाया है।
मैं एक बात मानती हूँ कि पुरुष यदि पाक कला के लिए रुझान रखता है तो वह ज्यादातर व्यावसायिक कारणों से होता है। यदि परुष शेफ होते हैं तो वह बड़े होटल्स या रेस्टोरेंट्स में ही कार्य करने के लिए व्यंजन पकाते हैं। जबकि एक औरत का खाना पकाना पूरे परिवार की आत्मा और मन दोनों की संतुष्टि के लिए होता है। माँ के हाथ के खाने का स्वाद बड़े से बड़ा होटल भी नहीं दे सकता और फिर अपने परिवार की पसंद नापसंद उनकी इच्छा का मान रख कर पकाया खाना निः संदेह स्वादिष्ट ही होगा। ऐसे में औरत से खाना बनाने का अधिकार छीन लेना कि वह दफ्तर में कार्य करती है ये गलत है। औरत के मन से खाने का स्वाद निकलता है न की उसके हाथों से। अपने परिवार के लिए बनाये खाने में मसालों के साथ प्रेम भी डाला जाता है जिस से उसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। यह आप को व्यावसायिक रूप से पके होटल के खाने में कहाँ आएगा। कुछ चीजों और कार्यों का बटवारा यूँ ही नहीं किया गया है। ये सब औरत और पुरुष की शारीरिक बनावट के आधार पर किया गया है। औरत का मन पुरुष के मुकाबले ज्यादा कोमल होता है ,औरत ज्यादा अहसास से परिपूर्ण होती है , औरत घर पर रहकर परिवार और बच्चो की बेहतर कद्र कर सकती है आदि आदि। ये कुछ कारण है की औरत को घर की रानी कहा जा सकता है।क्या हुआ जो एक कामकाजी औरत ने घर आ कर अपने पति की पसंद का खाना पका लिया। ……। कम से कम इस से दोनों के बीच प्यार तो बढ़ा। आप खुद सोचें की बच्चे को जन्म देने की जिम्मेदारी के लिए भी अगर विवाद हो तो क्या उसे भी पुरुष को सौंप दिया जाएगा ? नहीं हो सकता क्योंकि ये बटवारा ईश्वर ने ही कर दिया है। इस लिए जिसका काम उसी को साझे , दूजा करें तो घंटा बाजे वाला मुहावरा सही बैठता है।
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