आज को ख़ुशी से जीयें …………… !
सब से पहले तो क्षमापर्थी हूँ जो पिछले कई दिनों से कुछ व्यक्तिगत कारणों में व्यस्तता के कारण आप को कुछ नया न दे पाई। पर इसी व्यस्तता ने आज के एक जाने पहचाने सत्य की और फिर से ध्यान आकर्षित किया है। अतः आप सभी के समक्ष आज के ही युग के एक बढ़ते प्रचलन का विवरण करने की चाह जागी है वह है commercialization और materialism . मैंने कुछ अनुभवों से यह जाना की आज मानव के लिए धन की अहमियत इस कदर बढ़ गयी कि उसे उसके आगे अपने सुखों के साथ समझोते भी करने पड़े तो वह पीछे नहीं हटता। मेरे एक परिचित के पास एक अच्छा खासा land piece था। खुद एक छोटे से किराये के घर में रह कर वह उस पर एक अच्छा सा घर बना कर रहने का ख्वाब देखते थे। पर अचानक पता चला कि उन्होंने उस plot पर एक floor पर दो -दो flats की तीन मंजिला ईमारत बना कर बेच दिया। और खुद एक बड़े परिवार के साथ उसी छोटे से घर में रहते रहे। अब इस घटना में मुझे एक बात समझ नहीं आई कि धन हमें ख़ुशी देने के लिए होता है न कि हमारी तकलीफों को बढाने या ज्यों का त्यों बनाये रखने के लिए। उस लम्बी चौड़ी ईमारत के बन जाने के बाद भी उन्हें एक खुली जगह नहीं नसीब हुई। हाँ उनके account में पैसा जरूर आ गया।
इस सन्दर्भ में ये दिखा कि भविष्य और अपना कल सुरक्षित करने के लिए मानव अपने आज की बलि चढ़ा रहा है। रोजमर्रा की बढ़ती जरूरतों के चलते मानव को बढ़ते खर्च अहसास हो रहा है। यही अहसास उसे कल आने वाले खर्च की भी याद दिलाता रहता है। जिस से वह आज हाथ भींचने लगता है। और आज हाथ भींचने का अर्थ है की वर्तमान के खर्चों में कटौती कर के भविष्य के लिए बचाना। मेरे ऐसा मानना है कि जीवन को कल के नजरिये से नहीं देखना चाहिए। आज जो है वही सच है। बचत आवश्यक है पर यदि ये बचत आप से आज के सुख छीन रही है तो ये भी हो सकता है कि कल हम उस धन का सुख भोगने के लिए जीवित ही न हों। और फिर बच्चों को सदा इस लायक बनाने का प्रयास करें की उनके लिए धन जोड़ने की जरूरत ही न पड़े। ............. पूत कपूत तो क्या धन संचय , पूत सपूत तो क्या धन संचय। अर्थात बच्चा यदि लायक है तो खुद ही इतना जोड़ लेगा की अपना गुजर बसर अच्छे से कर सके। और यदि बच्चा नालायक है तो आप की जोड़ी हुई तमाम संपत्ति भी गवांने में उसे ज्यादा समय नहीं लगेगा। इस लिए हर पीढ़ी को अपनी जिंदगी की वह तमाम खुशियां खुल के जीनी चाहिए जो वह बच्चों के लिए त्याग कर देते हैं। और जो धन सिर्फ bank locker में रह कर ख़ुशी न दे सके उसे आज की ख़ुशी के लिए खर्च करें। और अपना वर्तमान खुशगंवार बनाये।
सब से पहले तो क्षमापर्थी हूँ जो पिछले कई दिनों से कुछ व्यक्तिगत कारणों में व्यस्तता के कारण आप को कुछ नया न दे पाई। पर इसी व्यस्तता ने आज के एक जाने पहचाने सत्य की और फिर से ध्यान आकर्षित किया है। अतः आप सभी के समक्ष आज के ही युग के एक बढ़ते प्रचलन का विवरण करने की चाह जागी है वह है commercialization और materialism . मैंने कुछ अनुभवों से यह जाना की आज मानव के लिए धन की अहमियत इस कदर बढ़ गयी कि उसे उसके आगे अपने सुखों के साथ समझोते भी करने पड़े तो वह पीछे नहीं हटता। मेरे एक परिचित के पास एक अच्छा खासा land piece था। खुद एक छोटे से किराये के घर में रह कर वह उस पर एक अच्छा सा घर बना कर रहने का ख्वाब देखते थे। पर अचानक पता चला कि उन्होंने उस plot पर एक floor पर दो -दो flats की तीन मंजिला ईमारत बना कर बेच दिया। और खुद एक बड़े परिवार के साथ उसी छोटे से घर में रहते रहे। अब इस घटना में मुझे एक बात समझ नहीं आई कि धन हमें ख़ुशी देने के लिए होता है न कि हमारी तकलीफों को बढाने या ज्यों का त्यों बनाये रखने के लिए। उस लम्बी चौड़ी ईमारत के बन जाने के बाद भी उन्हें एक खुली जगह नहीं नसीब हुई। हाँ उनके account में पैसा जरूर आ गया।
इस सन्दर्भ में ये दिखा कि भविष्य और अपना कल सुरक्षित करने के लिए मानव अपने आज की बलि चढ़ा रहा है। रोजमर्रा की बढ़ती जरूरतों के चलते मानव को बढ़ते खर्च अहसास हो रहा है। यही अहसास उसे कल आने वाले खर्च की भी याद दिलाता रहता है। जिस से वह आज हाथ भींचने लगता है। और आज हाथ भींचने का अर्थ है की वर्तमान के खर्चों में कटौती कर के भविष्य के लिए बचाना। मेरे ऐसा मानना है कि जीवन को कल के नजरिये से नहीं देखना चाहिए। आज जो है वही सच है। बचत आवश्यक है पर यदि ये बचत आप से आज के सुख छीन रही है तो ये भी हो सकता है कि कल हम उस धन का सुख भोगने के लिए जीवित ही न हों। और फिर बच्चों को सदा इस लायक बनाने का प्रयास करें की उनके लिए धन जोड़ने की जरूरत ही न पड़े। ............. पूत कपूत तो क्या धन संचय , पूत सपूत तो क्या धन संचय। अर्थात बच्चा यदि लायक है तो खुद ही इतना जोड़ लेगा की अपना गुजर बसर अच्छे से कर सके। और यदि बच्चा नालायक है तो आप की जोड़ी हुई तमाम संपत्ति भी गवांने में उसे ज्यादा समय नहीं लगेगा। इस लिए हर पीढ़ी को अपनी जिंदगी की वह तमाम खुशियां खुल के जीनी चाहिए जो वह बच्चों के लिए त्याग कर देते हैं। और जो धन सिर्फ bank locker में रह कर ख़ुशी न दे सके उसे आज की ख़ुशी के लिए खर्च करें। और अपना वर्तमान खुशगंवार बनाये।
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