कृति के प्रति निर्वाह …………!
मैंने सदा ही बच्चो के व्यव्हार और जीवनशैली से सम्बंधित आलेख लिखे।पर आज मैं माता पिता के व्यव्हार से जुड़ा लेख लिखना चाहूंगी जिस से हमारे बच्चे प्रभावित होते हैं। ये कोई आवश्यक तो नहीं की हमसे गलतियां नहीं होती या बड़े हो जाने पर हमने सभी कुछ इस तरह सीख लिया है कि निपुणता हमारी रगों में घुस गयी है। ऐसा नहीं है ,अपने बच्चों के साथ एक नए सिरे से जीवन की शुरुआत करनी पड़ती है। इस जीवन का लगभग 65 से 70 % बच्चो के ही नाम हो जाता है।  बाकि का बचा जीवन ही हम अपने लिये जीते हैं। तब बच्चो की आवश्यकताओं से लेकर उनकी सुरक्षा और भविष्य जैसे कई मसले हमें खुद से जयादा बड़े लगने लगते हैं। यही माँ बाप बनने का सुख भी है और जिम्मेदारी भी। अपने वंश को फलता फूलता देखना और उन्हें एक सम्बल प्रदान करना सभी माता पिता की चाह होती है। 
             इस सन्दर्भ में एक तथ्य अहम है कि माता व पिता दोनों अलग अलग परिवार के सदस्य होते है सोच से, रहन सहन से, आर्थिक स्थिती  से और वातावरण से। विवाहोपरांत और संतान से पहले उन्हें ये प्रयास करना चाहिए की उनके सभी मत आपस में एक सार हो जाए। जिस से संतान आने के बाद उन्हें उसके पालन पोषण में विचारों की भिन्नता का सामना न करना पड़े। अक्सर इस तरह की परिस्थिति में बच्चे पीड़ा का सामना करते हैं। एक बच्चे को अपने दोनों अभिभावकों का प्रेम एक सामान रूप में चाहिए होता है। जिस से उसका सामाजिक विकास सही तरीके से हो पाता है। यदि विवाहोपरांत अपने अपने अहम को दरकिनार कर एक सुखी दांपत्य जीवन नहीं निभा पा रहें हों ऐसे में किसी भी बच्चे को अपने बीच लाने का अधिकार नहीं होना चाहिए। वह जिसे दोहरे सम्बल की आवश्यकता है वह दो चक्कियों की पाट में पीस कर अपने आने वाले  भविष्य को बदकिस्मती में बदला पाता है। किसी नए जीवन को सवारने की जिम्मेदारी जब दो लोगो पर होती है तो उसे ईमानदारी से निभाना चाहिए। नहीं तो एक बच्चा सिर्फ आप के मनोरंजन के फल का सामान बन कर रह जाता है। पढ़ने में अजीब सा लगा पर यही सत्य है। बच्चे की मनः स्थिति क्या होती है यह मैंने अपने एक परिचित के बच्चे से जाना।  जो अपने अभिभावकों के बीच के मन मुटाव और अलगाव का खमियाजा इस कदर भुगत रहा है की उसे जीवन के खूबसूरत होने का अहसास ही नहीं है। उसने तो जीवन को सिर्फ लड़ते झगड़ते ,एक दूसरे को अपशब्द कहते और उसमे खुद को पिसते हुए गुजारा है। इस लिए ये आवश्यक है कि विधाता की ही तरह हम भी एक एक नयी रचना के कर्णधार है तो उसी की तरह उसे सवारें भी। जीवन अनमोल है  भी जिसे आप इस दुनिया में लाएं हैं।      

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