धर्म के प्रति समर्पण ………!
हिंदुस्तान के लोग उन मुद्दों को अहमियत दे कर बवाल खड़ा करना जानते है जो बिना काम के और तथ्यहीन होते हैं। जो मुद्दे प्रगति और सार्थकता की ओर ले जाते हैं उन के लिए भारतियों के पास समय नहीं है। अब देखिये कि घर वापसी नाम से चलाये जा रहे धर्म परिवर्तन के कार्यक्रम को और बढ़ावा देने के लिए एक नया शगूफा छोड़ा गया है वह है हिन्दुओं से 10 बच्चे पैदा करने की अपील जिस से हिन्दू जनसख्या बढ़ सके।  अरे इन भ्रष्ट नेताओं को कोई ये समझाए की जनसंख्या तो हिंदुस्तान की ऐसे ही बढ़ रही है। अगर हर परिवार 10 -12 बच्चे पैदा करने लग गया तो उस हिसाब से देश में सुविधाएं कैसे जुटाओगे। आधा तो तुम्हारी ही जेबों में जा रहा है जो कुछ फिसलते हुए जनता तक पहुंचता है।  उसमे कितने हिस्से करोगे कि एक दाना भी नसीब में न आये। ये सब अपना वोट बैंक बढाने की कोशिश है न की हिन्दुओं के प्रति सम्मान की। इस तरह हिन्दुओं का उद्धार न तो होगा न ही उनके दिन फिरेंगे। अलबत्ता ये जरूर होगा की देश और मंहगाई और गरीबी की चपेट में आ जायेगा पर इस से इन नेताओं की जेब पर क्या असर। 
                              क्या ऐसा नहीं लगता कि जरूरत है सोच बदलने की और एकजुट होने की।  पांच अँगुलियों की मुट्ठी ही घूंसा बन कर किसी का मुहँ तोड़ सकती है।  ऐसे में क्यों न एक होकर अपनी एकता का बल दिखाएँ। जातिगत विशेषतायें तभी मायने रखती है जब आप अपने समाज के प्रति समर्पण की भावना रखते हों। सिर्फ आठ दस बच्चे पैदा कर लेने से हिन्दू जनसँख्या की वृद्धि संभव नहीं है।  ये समाधान अन्य कई मुसीबतों को न्यौता देने वाला है। भूखमरी ,गरीबी,  बेरोजगारी ,लूटपाट ,हत्या आदि  संभावनाएं इस एक विचार के साथ जन्म लेने लगती है। मैं ऐसा मानती हु कि आप  जिस भी धर्म को मानते हैं उसे शिद्दत से अपनाएं चाहे वह उसके नियम हो या उसके फलसफे। आप को किसी भी साधु महात्मा की जरूरत नहीं। आप सिर्फ अपने धर्म की बेहतर पुस्तकों से धर्म की व्याख्या समझिए और उसे उसी रूप में ईमानदारी से अपना ले। उसका अंतःकरण से पालन करें और उसे प्रति अपने जज्बे को ईमानदार रखें। यही सबसे बड़ा उपाए है किसी धर्म को बढाने का और बचाने का।  इन भ्रष्ट नेताओं को बेबुनियाद बातों के तीर चलाने बंद कर देने चाहिए अगर वह वाकई अपने धर्म की इज्जत करते हैं। पर हम सभी जानते है कि ऐसा नहीं है ……………। 

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