इष्ट की मूर्त छवि मन में ………!
आज इंसान का morel इतना गिर चुका है कि वह इंसानियत भूल कर ऐसे मुद्दों को तवज्जो देने लगा है जो बिना वजह ही खून खराबों का कारण बनती है। पेरिस के चार्ली एब्दों हमले और भारत में भी घर वापसी या लव जिहाद जैसी घटनाएं सही मायनों में देखा जाए तो बेमानी है। पर धर्म के ठेकेदारों को तो इन मुद्दों को बलवा का रूप दे कर अनावश्यक उत्पात फ़ैलाने में मजा आता हैं। इसे दुखद नहीं तो और क्या माने कि जिन पैगम्बर को मुस्लिम समुदाय ईश्वर का दर्जा देता है उन्ही के शांति और अमन बनाये रखने के पैगाम को धराशाई करने में उसे वक्त नहीं लगा। भारत में भी धर्म से जुड़े जो घर वापसी का अभियान चल रहा है उसे इस प्रकार समझे की क्या अचानक धर्म परिवर्तन से उस धर्म से जुडी व्यक्ति की आदतें भी बदल जाएंगी ? और फिर ये लव जिहाद कैसा ? जो भी चाहे जिस धर्म में विवाह कर ले और कोई जरूरी नहीं कि एक दूसरे का धर्म अपनाने के लिये बाध्य होना पड़े। ये कुछ ऐसे मुद्दें है जो व्यक्ति से व्यक्तिगत तौर पर जुड़े है।  जिन में समाज की दखलंदाजी सही नहीं होती। 
    ईश्वर या धर्म वैसा ही है जैसा आप उसे अपनाते हैं।  हम में से किसी ने ईश्वर को नहीं देखा पर सभी धर्मों में अपने परमपिता की एक छवि बनाई गयी है हम उसे वैसे ही याद करते हैं। इसी प्रकार धर्म भी हमें विरासत में मिलता है और पुरखों के नियमों के अनुसार उसका पालन करते जाते हैं। ऐसे में अगर यदि कोई आप के ईश्वर या धर्म के प्रति कटाक्ष करता भी है तो इसमें आप के मन की छवि को कहाँ नुकसान पहुंच रहा है।  वह आज भी उतनी ही पवित्र और सुन्दर है। आप की कल्पना ही आप को आप के ईश्वर जोड़े रखती है और धर्म आप को एक पहचान के रूप में मिलता है। ये पहचान सिर्फ अपने नाम के आगे दूसरे धर्म का उपनाम लगाने से नहीं बदल सकते। अपने धर्म से जुडी आदतें जन्म के साथ ही हमारे व्यव्हार में घुसने लगती हैं। और वह ता उम्र साथ चलती है। क्या एक हिन्दू जो धर्म परिवर्तन से मुस्लिम बन गया हो वह अचानक मंदिर आ जाने पर सर नही झुकाएगा या हाथ नहीं जोड़ बैठेगा, ऐसा हो सकता है क्योंकि हमे इस तरह के संस्कार बचपन से ही मिलते हैं।  आज राजनीति में धर्म के तवे पर अपनी प्रगति की रोटियां सेकने का चलन बढ़ने लगा हैं।  अवैसी को ही लें  …… अपने विवादास्प्रद बयानों को किस कुशलता से वह धर्म से जोड़ कर अपने लोगों को अपने पक्ष में करता हैं। जन्म से कोई भी हिन्दू या मुस्लमान नहीं पैदा होता।  वह एक इंसान का बच्चा होता है जिसे पैदा करने वाला परिवार अपना नाम देता है जिस के आधार पर उसका धर्म और संस्कार तय होता हैं। चार्ली एब्दों के हमले का भी मूल मुद्दा बेबुनियाद था।  अगर किसी  ने किसी के इष्ट का अपमान कर भी दिया तो सबसे पहले तो वह खुद ही पाप का भागी बन रहा क्योंकि जो शक्ति पूरे संसार को चला रही वह जरूर इस अवहेलना को देख रही होगी।  और फिर इस से आप की श्रद्धा में क्यों फर्क पड़ने लगा , आप के स्मरण में तो आप के इष्ट वैसे ही हैं जैसा आप उन्हें देखना चाहते हैं। ईश्वर एक  ऐसी ताकत है जिसे ये छोटी छोटी हरकतें नहीं बिगाड़ सकती या मिटा सकती। कोई भी धर्म हो या कोई भी इष्ट उसे अपने मन की कल्पना में सजा कर रखें। बाहरी वातावरण से उसके प्रभाव को बिगड़ने न दीजिये। यही सब से बड़ा धर्म है और अपने इष्ट के प्रति श्रद्धा .......... 

Comments