अलौकिक शक्ति की पहचान .......!
आज कुछ ऐसी चर्चा करना चाहूंगी जो प्रासंगिक है और उसके लिए मुझे एक सशक्त सहारा भी मिला। वह मुद्दा है कि ईश्वर है या नहीं ? आप खुद को नास्तिक या आस्तिक की श्रेणी में रखते है ? आप उसके अस्तित्व के प्रति कितने आशावान है ? और सबसे बड़ी बात ये कि आप उसके संपर्क में रहने के लिए खुद प्रयास करते हैं या अन्य कोई माध्यम बनाते हैं ? ये कुछ अहम सवाल है जो मैंने आज आमिर खान की फिल्म पी. के. देख कर महसूस किया। उस फिल्म में एक बहुत ही तार्किक बात कही गयी है कि यदि जैसा है जो है स्वीकार करने की बाध्यता होती तो भगवान मानव के मस्तिष्क में तर्क की शक्ति नहीं डालता। तर्क इस लिए कि सही गलत और सच झूठ के बीच की महीन रेखा का फर्क सामने आ सके।
ईश्वर के अस्तित्व को माने या न माने पर ये तो जरूर मानते हैं कि कोई ऐसी शक्ति है जिस ने इस संसार को बनाया और उसे आज तक चला रही है। हम सोचते और चाहते बहुत कुछ है पर क्या सब कुछ वैसा ही हमें मिल पाता है ? नहीं, क्योंकि उस ने किसी जीवन को लाने से पहले उसके बारे में सब कुछ निर्धारित कर दिया है। हर पल का हिसाब उस के खाते में मौजूद है। हम वही करते हैं जो उस की मर्जी के अनुसार सही होता है। अगर आप खुद को आस्तिक मानते हैं तब तो आप उसके प्रति आशान्वित होंगे ही। पर यदि आप खुद को नास्तिक मानते है तो भी किसी शक्ति का अहसास तो करते ही होंगे। आप किसी भी धर्म के हो, कोई भी शक्ति के उपासक हों पर सोच सबकी यही है कि कोई ताकत है जो सब कुछ govern कर रही है। अब इस को इस तरह समझिए कि वह ताकत एक ही है क्योंकि आप चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम , सिख हों या ईसाई अर्थात किसी भी धर्म के अनुयायी हो। सभी के प्रति सभी की परम शक्तियों का रवैया एक जैसा ही है। आप खुद महसूस करें की सभी धर्मों में एक ही तरह से जन्म, एक ही तरह से मृत्यु। एक ही तरह से हादसे और एक ही तरह से खुशी आती है। एक ही तरह की घटनाओं को मनाने का तरीका हमने बदला है। उसने तो सिर्फ हम तक जरिया भेजा है उसे वजह हम बनाते है। इस तरह सोचा जाए तो वह शक्ति एक ही है। उसे हम ने और हमारे द्वारा बनाये इन पोंगी पंडितों ने अलग कर के तमाम धर्मों और शक्तिओं में बाँट दिया हैं। जब की ऐसा नहीं है। आप ये सोचे की क्या बच्चे के जन्म की प्रक्रिया हिन्दू , मुस्लिम , ईसाई में अलग अलग होती है ? हां जन्म के बाद की सारी रस्में हमने अपने हिसाब से बना दी है। इस पूरी सृष्टि को सिर्फ एक ताकत चला रही है और उस ताकत तक सीधा पहुँचाने का सब से अच्छा माध्यम हम खुद ही हैं। उस के लिए सिर्फ अपने इस विश्वास पर कायम रहना है कि हम उस शक्ति के उपासक है जिस ने ये सब कुछ बनाया है। यदि आप खुद को नास्तिक मानते है तो अपने विचार में ये लाईये कि निराकार ब्रम्ह को पूजने वाले भी तो किसी न किसी शक्ति को मानते हैं। हा ये जरूर है कि उन के ईश्वर हिन्दुओं की तरह आकार में नहीं ढल पाये। इस लिए जिस दिन हम सभी ये समझ जाएंगे कि हम सब एक ही शक्ति की उपज हैं सब कुछ अच्छा हो जाएगा। सोच बदलों, भविष्य बदलों ……।
आज कुछ ऐसी चर्चा करना चाहूंगी जो प्रासंगिक है और उसके लिए मुझे एक सशक्त सहारा भी मिला। वह मुद्दा है कि ईश्वर है या नहीं ? आप खुद को नास्तिक या आस्तिक की श्रेणी में रखते है ? आप उसके अस्तित्व के प्रति कितने आशावान है ? और सबसे बड़ी बात ये कि आप उसके संपर्क में रहने के लिए खुद प्रयास करते हैं या अन्य कोई माध्यम बनाते हैं ? ये कुछ अहम सवाल है जो मैंने आज आमिर खान की फिल्म पी. के. देख कर महसूस किया। उस फिल्म में एक बहुत ही तार्किक बात कही गयी है कि यदि जैसा है जो है स्वीकार करने की बाध्यता होती तो भगवान मानव के मस्तिष्क में तर्क की शक्ति नहीं डालता। तर्क इस लिए कि सही गलत और सच झूठ के बीच की महीन रेखा का फर्क सामने आ सके।
ईश्वर के अस्तित्व को माने या न माने पर ये तो जरूर मानते हैं कि कोई ऐसी शक्ति है जिस ने इस संसार को बनाया और उसे आज तक चला रही है। हम सोचते और चाहते बहुत कुछ है पर क्या सब कुछ वैसा ही हमें मिल पाता है ? नहीं, क्योंकि उस ने किसी जीवन को लाने से पहले उसके बारे में सब कुछ निर्धारित कर दिया है। हर पल का हिसाब उस के खाते में मौजूद है। हम वही करते हैं जो उस की मर्जी के अनुसार सही होता है। अगर आप खुद को आस्तिक मानते हैं तब तो आप उसके प्रति आशान्वित होंगे ही। पर यदि आप खुद को नास्तिक मानते है तो भी किसी शक्ति का अहसास तो करते ही होंगे। आप किसी भी धर्म के हो, कोई भी शक्ति के उपासक हों पर सोच सबकी यही है कि कोई ताकत है जो सब कुछ govern कर रही है। अब इस को इस तरह समझिए कि वह ताकत एक ही है क्योंकि आप चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम , सिख हों या ईसाई अर्थात किसी भी धर्म के अनुयायी हो। सभी के प्रति सभी की परम शक्तियों का रवैया एक जैसा ही है। आप खुद महसूस करें की सभी धर्मों में एक ही तरह से जन्म, एक ही तरह से मृत्यु। एक ही तरह से हादसे और एक ही तरह से खुशी आती है। एक ही तरह की घटनाओं को मनाने का तरीका हमने बदला है। उसने तो सिर्फ हम तक जरिया भेजा है उसे वजह हम बनाते है। इस तरह सोचा जाए तो वह शक्ति एक ही है। उसे हम ने और हमारे द्वारा बनाये इन पोंगी पंडितों ने अलग कर के तमाम धर्मों और शक्तिओं में बाँट दिया हैं। जब की ऐसा नहीं है। आप ये सोचे की क्या बच्चे के जन्म की प्रक्रिया हिन्दू , मुस्लिम , ईसाई में अलग अलग होती है ? हां जन्म के बाद की सारी रस्में हमने अपने हिसाब से बना दी है। इस पूरी सृष्टि को सिर्फ एक ताकत चला रही है और उस ताकत तक सीधा पहुँचाने का सब से अच्छा माध्यम हम खुद ही हैं। उस के लिए सिर्फ अपने इस विश्वास पर कायम रहना है कि हम उस शक्ति के उपासक है जिस ने ये सब कुछ बनाया है। यदि आप खुद को नास्तिक मानते है तो अपने विचार में ये लाईये कि निराकार ब्रम्ह को पूजने वाले भी तो किसी न किसी शक्ति को मानते हैं। हा ये जरूर है कि उन के ईश्वर हिन्दुओं की तरह आकार में नहीं ढल पाये। इस लिए जिस दिन हम सभी ये समझ जाएंगे कि हम सब एक ही शक्ति की उपज हैं सब कुछ अच्छा हो जाएगा। सोच बदलों, भविष्य बदलों ……।
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