एक स्थिति की कल्पना
एक स्थिति की कल्पना : ••••••••••••••••••••••••
फोन से उभरती हुई एक कर्कश सी लगती आवाज
"नहीं रहे"..............!!
और सहसा फिजाओं में घुल उठते है ,
"नहीं रहे" के भावों के अनगिनत रंग
हमारे इर्द गिर्द बहुत सारे लोग होते हैं।
पर पास नहीं होते है...
आसपास रहकर भी बहुत सारे लोग कहीं और होते है ।
कई बार हमारे पास नहीं होते है सबूत कि
वो क्या था? ......जो "नहीं रहा"
और सुनो तुम
तुम नहीं होकर भी कैसे रह जाती हो...
हर जगह, हर समय
कुछ तो ख़ास होगा ज़रूर जो
ना होकर भी रहता है।
और खुद मैं
जाने कितने दिनों से अपने पास नहीं रहा
कुछ खोया खोया सा रहता है
ये भी डर मन में है कि
कहीं कोई कह ना दे कि
फलाने अब नहीं रहे....!!
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