यादों में गौरैया

 यादों में गौरैया :                                   ••••••••••••••••

हमने अपने जीवन में चहकने और फुदकने के मायने गौरैया से सीखे थे। प्रकृति से पहला नाता भी उसी के ज़रिये बना था। अब ऊँचे होते मकान, सिकु़ड़ते खेत, कटते पेड़, सूखते तालाब और फैलते मोबाइल टावरों ने प्यारी छोटी सी गौरैया को हमसे छीन लिया है. पिछले दिनों गौरैया को दिल्ली का राज्य पक्षी घोषित किया गया. ये याद करना मुश्किल है कि गौरैया को आख़िरी बार कब देखा । पक्षी विज्ञानियों की मानें तो गौरैया विलुप्ति की ओर है. उसकी आबादी सिर्फ़ बीस फ़ीसद बची है.

इसी चंचल, शोख़ और ख़ुशमिज़ाज गौरैया का घोंसला घरों में शुभ माना जाता था. इसके नन्हे बच्चों की किलकारी उस घर की ख़ुशी और संपन्नता का प्रतीक होती थी । घरों में छोटे बच्चों का पहला परिचय जिस पक्षी से होता था वह गौरैया ही थी । दोपहर को घरों में खाना खाने के बाद आँगन में रखी थालियों में गौरैया बचे हुए चावल के दाने चुगती थीं। टबों-परातों में भरा पानी उनका खेलने और नहाने का पूल होता था। छींटे उछालती गौरैया देखना ख़ुद में एक सुखद अनुभूति थी।  छतों पर सूखते गेंहू और दालें, कपड़ों की रस्सी, दरवाज़ों के ऊपर का ताका और मुंडेरें इनके खेल के टापू होते थे।  गौरैया के बाद बचपन में दूसरी पहचान कौवे से होती थी। सुनते हैं मेहमान के आने का संदेश और पितरों को तृप्ति देने वाले कौवों पर भी ख़तरा है और वो भी ग़ायब हो रहे हैं। 

 बचपन में माँ अक्सर इन गौरैयों के लिए दोने कसोरे में भोजन पानी की व्यवस्था जुटा कर रखती थी। बच्चों की सुबह की नींद ही टूटती थी गौरैयों की चहक के साथ।  दुनिया में कोई पन्द्रह सेमी. लम्बी इस फुदकने वाली चिड़िया को लोग घरेलू चिड़िया मानते हैं। सामुहिकता में इसका भरोसा रखने वाली ये चिड़िया मनुष्यों की बस्ती के आस-पास ही घोंसला बनाती हैं । हर वातावरण में अपने को ढालने वाली यह चिड़िया हमारे बिगड़ते पर्यावरण का दबाव नहीं झेल पा रही है।  जीवन शैली में आए बदलाव ने उसका जीवन मुहाल कर दिया है. लुप्त होती इस प्रजाति को “रेड लिस्ट” यानी ख़तरे की सूची में डाला गया है।  गौरैया हमारी आधुनिकता की बलि है

अमूमन कमरे के रोशनदानों में नन्ही गौरैया का एक हँसता-खेलता छोटा परिवार रहता था। अब तो घरों से रोशनदान ही ग़ायब हो गए हैं। पहले घरों में ही अनाज धोने-सुखाने की परंपरा हुआ करती थी। । आँगन में दाने फटके जाते थे। आँगन में चावल के टूटे दाने गौरैया के लिये डाल दिए जाते थे. गौरैया का झुण्ड पौ फटते ही आता था. चूँ चूँ का उनका सामूहिक संगीत घर में जीवन की ऊर्जा भर देता था। अब घर में आँगन नहीं है। पैकेट बंद अनाज आता है। वातानुकूलन के चलते रोशनदान नहीं हैं।  इसीलिए गौरैया रूठ गयी है। अब वह नहीं आती। 

गौरैया समझदार और संवेदनशील चिड़िया है. बच्चों से इसका अपनापा है. रसोई तक आकर चावल का दाना ले जाती है. घर में ही घोंसला बनाकर परिवार के साथ रहना चाहती है. 

तमाम लोकगीतों, लोककथाओं और आख्यानों में जिस पक्षी का सबसे ज्यादा वर्णन मिलता है, वह गौरैया है. महादेवी वर्मा की एक कहानी का नाम ही है ‘गौरैया’. उड़ती चिड़िया को पहचानने वाले पक्षी विशेषज्ञ सालिम अली ने अपनी आत्मकथा का नाम ही रखा है “एक गौरैया का गिरना”. कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा “नीड़ का निर्माण फिर” में गौरैया के हवाले से अपनी बात कही है. शेक्सपियर के नाटक “हेमलेट” में भी एक पात्र अपनी बात कहने के लिए गौरैया को ज़रिया बनाता है. मशहूर शिकारी जिम कॉर्बेट कालाडूंगी के अपने घर पर रोज़ हज़ारों गौरैयों के साथ रहा करते थे.

पूरे देश में बोली-भाषा, खान-पान, रस्मो-रिवाज सब बदलता है। पर गौरैया नहीं बदलती। अब वह सिर्फ़ यादों में चहकती है।  अतीत के झुरमुट से झाँकती है।  क्यों यह समाज नन्ही गौरैया के लिए बेगाना हो गया है? इसे अपने आँगन में हमें वापस बुलाना होगा। नहीं तो हम आने वाली पीढ़ी को कैसे बतायेंगे कि गौरैया क्या थी। उसे ये मीठा गीत नहीं सुना पायेंगे- ‘‘चूँ चूँ करती आई चिड़िया. दाल का दाना लाई चिड़िया”।

विकास की कहानी में सबसे अहम प्रतिमान ये नहीं है कि हमने कितनी बड़ी मशीनें और इमारतें बना ली हैं।  बल्कि हमारे समय की सबसे छोटी, कोमल और प्यारी जीव-जातियों को हमने कैसे बचाया है, ये बहुत ज़रूरी बात है। और अगर विकास इस गौरैया को नहीं बचा सका या विकास की ‘रेड लिस्ट’ में उसे लाकर रख दिया गया है तो समझिए कि ये विकास प्रकृति के ख़िलाफ़ है। और प्रकृति के ख़िलाफ़ जाकर ख़ुशियाँ खोने लगती हैं। वैसे ही, जैसे घरों से खो गई हैं गौरैया। काजल की लकीरों वाली पीठ और पंख लिए न जाने किस विकास की भेंट चढ़ गईं. गौरैया को बचाना प्रकृति के साथ सहजीवन की सम्भावनाओं को बचाना है। गौरैया को बचाना घरों में बचपन को बचाना है। गौरैया को बचाना दैनिक जीवन में कविताओं जैसी लय को बचाना है। गौरैया को बचाना ख़ुद को बचाना है तो आइए इसके नीड़ का निर्माण फिर से करें।

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