रीपेरेंटिंग से खुद को हील करना

 रीपेरेंटिंग से ख़ुद को हील करना :                ***********************

आज की भागती दौड़ती दुनिया में किसी के पास इतना समय नहीं कि कोई दूसरा बैठ कर सुख दुःख के हाल समझे या जाने। मशीनी विकास ने भावनाओं के जुड़ाव को कम कर दिया है। अब हम व्हाट्सएप पर तो good morning, good night लिख देते हैं पर किसी के दुःख में जरूरत में उस तक जाकर सांत्वना या ढांढस देने का समय नहीं निकाल पाते। ऐसे में ये एक तरीका कारगर हो सकता है ख़ुद ही खुद को मजबूत रखने का, संभालने का और अकेले स्थितियों से जूझने का। 

रेपरेंटिंग अर्थात एक वयस्क उमर में अपने अंदर एक बच्चा पुनः जीवित करके खुद ही दुलार देना। जिससे बाहरी दुनिया में वयस्क बनकर जीना सुलभ हो जाये। अर्थात अपने इनर चाइल्ड की खुद देखभाल करना। जैसे कि बचपन में हमारे छोटेपन में हमारे अभिभावकों ने की थी। जब हम बहुत कुछ नहीं जानते थे। तब हमें धीरे धीरे वो सब इस तरह सिखाना कि हम बिना क्षति के वो सब कर सके। हमें सुरक्षा महसूस करवाना। हमें ये अहसास कराना की हर घड़ी हर पल कोई है जो हमारी फिक्र कर रहा। बस यही हमें बड़े होकर अपने खुद के लिए करना है जो कि रीपेरेंटिंग कहलाता है। 

इन दिनों बेहद भावनात्मक दबाव झेल रहे लोगों को इसके लिए कुछ विशेष चीज़ें करनी होगी -

1. कांच में खुद को देखकर I love you  अपना नाम लेकर बोला जाए।

2. दिन में एक दो बार खुद के हाथों से खुद को आलिंगन दें और महसूस कराएं की आप खुद से जुड़े हुए हैं।

3.बचपन की कोई ऐसी याद जो अधूरी रह गयी हो। उसे पूरा करने के लिए कोशिश करनी शुरू कर दें।

4. अच्छे नतीजों के लिए एक नया रूटीन बनाएं।

5. रोज सोने से पहले अपना नाम लेकर खुद को thank you कहें। सुकून देने वाली बातें सोचकर सोएं।

खुद को आलिंगन करने का तरीका शुरू में अजीब लग सकता है पर ये कारगर सिद्ध होगा। ये बचपन के अनुभवों को दोबारा समझने और रिव्यू करने का अवसर देता है। ये अपने अंदर के इनर चाइल्ड को हील करने का तरीका है। ये एक सेल्फ मेडिकेशन की तरह से काम करता है जिससे अंदर पनप रहे बहुत से घाव पीड़ा हील होती है। और स्वास्थ्य मानसिक विकास किनोर बढ़ता है। 

जब इस संबंध में कोई अगर किसी थेरेपिस्ट से मिलता है  तो वह भी आपको अपने अंदर के बच्चे से बात करने को कहेगा। जिससे पता चले कि वो क्या महसूस कर रहा, क्या सुनना चाहता है, उसे क्या क्या नापसंद है आदि आदि। ये बहुत कुछ अंदर से सफाई जैसा होता है। क्योंकि अंदर बहुत कुछ कल का दबा लेकर कोई आज कोई भी खुश नहीं रह सकता। इसलिए रीपेरेंटिंग के जरिये उसका बिंदास बचपना बाहर लाया जाता है। और वो खिलकर खुलकर सामने आता है। guilt निकल जाता है। सिर्फ अपने प्रति purity बचती है। जो आज की व्यस्त दुनिया में खुद को सपोर्ट करने के लिए जरूरी होती है। 


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