खोखली प्रसिद्धि के लिए बिकता समाज

खोखली प्रसिद्धि के लिए बिकता समाज :  ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

समाज किस तरफ जा रहा है ये देखते हुए बहुत ग्लानि होने लगी है। लोग बस प्रसिद्धि, पैसा,  पावर और privacy के लिए ही जी रहे हैं। इन सब के लिए नए नए पैंतरे आजमाए जा रहे। रील्स बनाना, वीडियोस बनाकर post करना, उलजुलूल हरकतें करके अपना टैलेंट दिखाना वग़ैरह ....ये सब मन मस्तिष्क और आत्मा को सिर्फ़ और सिर्फ दूषित कर रहें है।

अभी हाल ही में गुरुग्राम नोयडा में एक 25 साल की उभरती टेनिस प्लेयर राधिका की हत्या हो गई। और ये किसी बाहर वाले ने नहीं बल्कि उसके खुद के पिता ने की। जब वह रसोई में कुछ बना रही थी। पिता पीछे से रिवॉल्वर लेकर आये और अपनी बेटी को पांच गोलियां मार दी। लड़की मौके पर ही खत्म हो गई। सुनने में आ रहा कि पिता अपनी बेटी के रील बनाने से परेशान था और उसका एक लड़का दोस्त भी था। हरियाणा की ही दो लड़कियों को पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किया गया कि वो गालियों और गंदी भाषा वाली रील्स बनाकर प्रसिद्धि बटोरने की कोशिश कर रही थी। 

कुछ दिनों पहले इंदौर का भी एक किस्सा बहुत चर्चा में रहा जिसमें एक युवक राजा रघुवंशी की शादी एक युवती सोनम से होती है। विवाहोपरांत दोनों हनीमून मनाने जाते हैं और वही सोनम ने अपने पूर्व प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति को खाई में गिरा कर हत्या करवा दी। इसी तरह मेरठ के एक युवक सौरभ को उसकी पत्नी और उसके प्रेमी ने मिलकर मार दिया। और उसके शव को टुकड़े टुकड़े करके एक नीले ड्रम में भरकर उसमें सीमेंट घोलकर डाल दिया। 

आख़िर इस तरह की अनेकों घटनाओं से क्या साबित हो रहा है। यही की अब भावनाओं में रहकर जीने का चलन खत्म हो रहा है। जीवन और विवाह को तो अब खेल समझा जा रहा है। मतलब एक तरह का time pass । निभी तो चला लेंगे। नहीं तो छोड़ दो।  या अगर पहले से किसी से चक्कर हो तो नये को मार दो। जीवन का मूल्य अब पसन्द और रुचि से कम होता जा रहा। 

जीवन देने वाला ईश्वर है । दुनिया में आना अगर वो तय करता है तो जाना भी उसी की मर्ज़ी पर होना चाहिए। आजकल ये निर्णय लेकर लोग खुद को भगवान समझने लगे है। मतलब वो तय कर सकते हैं कि सामने वाला बंदा कितने दिन जियेगा। कैसे जियेगा और किस तरह जियेगा। मां भी एक समय के बाद बच्चे को उसके अनुसार जीने के लिए छोड़ देती हैं। फिर अपनी पसंद के अनुसार जीने या ना जीने के लिए कोई किसी को कैसे बाध्य कर सकता है ? ?

शर्म आ रही है ऐसे समाज पर। जहां इस तरह की घटनाएं सामने आ रही। लड़कियां भी अपने प्रेमी के साथ मिलकर ऐसे जघन्य अपराध के बारे में सोच भी पा रही है। जो मर गया उसका भी एक परिवार है। जो उससे प्रेम करता है। अगर स्वीकृति नहीं है तो पहले ही उस सम्बंध को ना स्वीकारा जाए। 

आजकल उच्च वर्ग भी शादी विवाह को खेल की तरह लेने लगा है। मतलब दो चार साल का practice session type थोड़े दिन साथ जीकर देखा जाए। अगर match हो रहा तो कुछ दिन और खींच लेंगे। वरना अलग होने में कौन सा पहाड़ टूट पड़ रहा। पुराने समय में विवाह एक सामाजिक बन्धन की तरह स्वीकार किया जाता था। जिसमें प्यार, आदर और देखभाल gradually बढ़ती थी। जो चीजें अचानक होती हैं वो अचानक ही खत्म भी हो जाती है। इसीलिए पहले शादियां टिकती थीं क्योंकि तब सिर्फ़ खुद का ही नहीं परिवार समाज परिस्थिति सबका ख्याल रखा जाता था। काश वो दुनिया वापस आ जाये। और रिश्ते जीने का तरीका सब कुछ पहले जैसा हो जाये। 

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