पुरातन परंपराओं में भोजन की महत्ता
पुरातन परंपराओं में भोजन की महत्ता : ••••••••••••••••••••••••••••••••••••
प्राचीन परंपराओं में कुछ नियम विधि विधान ऐसे बनाये गए थे जिनके जरिये शरीर स्वस्थ और तंदुरुस्त रहता है। हमारे पुरखे उन नियमों की कद्र समझते थे और अपनाते भी थे। पर आज के टेक्नोक्रेट लोग उन अच्छे आचरणों को गवांरपन समझकर त्यागते जा रहे हैं। तभी रोग और पीड़ा के भागी बन रहे।
ये नियम कुछ इस तरह के हैं :
1- पांच अंगो ( दो हाथ , 2 पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करना चाहिए।
2. भोजन से पहले पैरों को ज़रूर धोना चाहिए क्योंकि गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है ।
3. दिन में दो समय समुचित भोजन करना चाहिए। जिसमें प्रातः और सायं ही भोजन का सही विधान है।
4. भोजन करते समय दिशा का जरूर ध्यान रखना चाहिए। पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुह करके खाना खाने से भोजन में दैवत्य गुण समाहित होते हैं।
5. कहते है कि दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है ।
6. ये भी मान्यता है कि पश्चिम दिशा की ओर मुख करके किया हुआ भोजन खाने से शरीर में रोग की वृद्धि होती है।
7. शैय्या पर , हाथ में थाली पकड़कर या टूटे फूटे बर्तनों में भोजन नहीं किया जाए।
8. मल मूत्र का वेग होने पर , कलह के माहौल में , अधिक शोर में , और किसी बड़े पेड़ के नीचे भी भोजन नहीं किया जाना चाहिए।
9. परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए। जो सामने हो उसे प्रेमपूर्वक ग्रहण किया जाए।
10. खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के, उनका धन्यवाद देते हुए , तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो ईश्वर से ऐसी प्राथना करके ही भोजन किया जाए ।
11. भोजन बनाने वाला बजी स्नान करके ही शुद्ध मन से , मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले 3 रोटिया अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये।
12. इर्षा , भय , क्रोध , लोभ , रोग , दीन भाव , द्वेष भाव , के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है।
13. आधा खाया या छोड़ा भोजन या हुआ फल ,मिठाईया आदि नहीं खानी चाहिए ।
14. एक बार खाने के लिए बैठा जाए तो मन भर खा लेना चाहिए। खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन करने नहीं बैठा जाए।
15. भोजन करते समय शांत रहना चाहिए। उस समय मौन रहने से ध्यान भोजन के स्वाद और पूरी तरह चबाने पर रहता है।
16. रात्री में भोजन आधा पेट ही खाना चाहिए। भरपेट खाने से अफारे की स्थिति बन सकती है।
17. भोजन इतना ले कि ३२ ग्रास से ज्यादा ना होए।
18. भोजन के विविध व्यंजनों में से सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन ,अंत में कड़वा खाना चाहिए।
19. सबसे पहले रस दार , बीच में गरिष्ठ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे !
20. भोजन शरीर को चलायमान रखने के उद्देश्य से खाया जा चाहिए ना कि स्वाद के पीछे भागकर सिर्फ़ जिव्हा की संतुष्टि के लिए कुछ भी खाया जाए।
21. अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी ग्रहण ना किया जाना चाहिए।
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