धर्म का नशा और मानवता का नाश
धर्म का नशा और मानवता का नाश.......!! ************************
भारत में हो रहे विशाल कुंभ मेले में माता पिता ने बेटी अखाड़े को दान कर दी है। पढ़ने लिखने की उम्र में एक नाबालिग लड़की को दान कर दिया और स्पष्टीकरण ये दिया कि 13 साल की बिटिया ने खुद ही ये इच्छा जाहिर की है।
ये अपराध नहीं तो और क्या है...जो धर्म की आड़ में खुल्लम खुल्ला हो रहे हैं। अगर बच्चों को पालने पोसने की क्षमता न हो तो पैदा करके उनका जीवन खराब करना तो वाकई अपराध की ही श्रेणी में आना चाहिए। बच्चे को बालिग होने तक तो अभिभावक अपने सरंक्षण में रखें।
धर्म का पालन एक स्वस्थ समाज के लिए जरूरी है। पर अंधभक्ति निसंदेह गलत है क्योंकि तब इंसान की सही गलत की समझ खत्म हो जाती है। ये नहीं कह सकते कि पुरातन धार्मिक परंपराएं ग़लत बनाई गई पर आजकल के बाबाओं, पुजारियों, पंडों, और तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने उसे अपने फायदे का साधन बना लिया है। जब तक वो लोगों को धर्म से डरा कर नहीं रखेंगे लोग उनके झांसे में नहीं आएंगे।
लेकिन समझ से परे ये बात है कि लड़कियां महिलाएं कोई वस्तु हैं क्या ....जिन्हें दान किया जा सके। अगर धर्म पालना की इतनी ही इच्छा है तो खुद क्यों नहीं आश्रम में रहकर की जाती है। क्यों नहीं ये सोचा गया कि एक 13 साल की मासूम बच्ची सैकड़ों साधु संन्यासियों के बीच कैसे रहेगी...?? क्या उसके शारीरिक सरंक्षण की गारंटी समाज, अभिभावक या आश्रम के साधु संत लेंगे ? ?
क्या इस बात की भी गारंटी दी जाएगी कि साधु बना इंसान पूरी तरह इंसानी कामनाओं से ऊपर उठ चुका है ? ? बहुत से ऐसे सवाल हैं जिनका अभिभावकों द्वारा सोचा जाना जरूरी है।
पर अब जब समाचारों में इस मुद्दें का काफी हो हल्ला होने पर लड़की को घर वापस भेज दिया गया है । इसमें भी कुछ बड़े अंधभक्त समर्थन में खुलकर उतर आये और कहने लगे कि वो साध्वी बनेगी धर्म का प्रचार करेगी ये तो अच्छी बात है। तो यहां भी कई प्रश्न खड़े होते हैं एक बच्चे के लिए पहले शिक्षा जरूरी है धर्म का प्रचार...!!
तमाम अनपत्तियों के बाद फिलहाल सजा के तौर पर उस बाबा को 7 साल के लिये अखाड़े से निलंबित कर दिया गया है। जबकि उसे इस कृत्य के लिए जेल में भेजा जाना चाहिए था। क्योंकि इस तरह की घटना दुबारा ना हो इसलिए कठोर कार्यवाही आवश्यक थी।
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