पत्नी कोई commodity नहीं,.. एक अहसास है
पत्नी कोई commodity नहीं,.........एक अहसास है: ***********************
पूॅंजी की नज़रों से दुनिया को देखने समझने वाला प्रेम को कैसे समझेगा ? उसे क्या समझ आएगा कि pressure और frustration से गुजरते व्यक्ति के लिए प्रेम दवा की तरह काम करता है। वह कैसे समझेगा कि पत्नी कमोडिटी नहीं एक सुंदर साथ और भरपूर एहसास है किसी के लिए ज़िंदा रहने का।
जीवन चलाने के लिए काम जरूरी है। और जीवन में जीवंतता भरने के लिए एक अदद परिवार भी चाहिए होता है। जो कि काम से थका हारा आने पर उसकी थकावट को दूर करने के लिए भोजन, मनोरंजन या संग का जतन करे। पत्नी बच्चे परिवार जीने का साधन हैं। एक पारिवारिक व्यक्ति काम ही इसीलिए करता है कि वह अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा कर सके।
ऐसे में घूरने का तात्पर्य क्या है ? क्या पत्नी को देखना उसके साथ वक्त गुजारना, उसे प्रेम करना ये वक्त जाया करना होता है ? ? पहले तो ये बड़े बड़े धन्ना सेठ ये बताएं कि इन लोगों ने अपनी पत्नियों को क्या समझा है..? ? उनके साथ बन्द अंधेरे कमरे में रात गुजार कर बच्चे पैदा करने भर का जरिया हैं क्या वो....क्योंकि जब 24×7 व्यक्ति काम करेगा। तो पत्नी से प्रेम निभाने का वक्त तो मिलेगा नहीं, बस शरीर की जरूरत के लिए रात छोड़ दी गई। अगर कोई आम कर्मचारियों परिवार पत्नी और बच्चों के साथ वक्त बिताना चाहता है यो क्या ये कोई हिंसक कार्यवाही है.....ये बात इंसान को यंत्र में बदलने वाले इन धन लोलुपों को यह बात कैसे समझ में आएगी.
मनुष्य होने की साधारण सी परिभाषा है सांस लेना. अपनों में, अपनों के साथ, अपनों के लिए। विदेशों में 5 days week इसीलिए किये गए ताकि 2 दिन में व्यक्ति पूरे हफ्ते की थकान और work pressure को उतार कर नए हफ्ते में नई ऊर्जा के साथ काम पर वापस आ सके। वो लोग life को बहुत enjoy करते हैं । और सबसे बड़ी बात वहां की आर्थिक स्थिति भी हिंदुस्तान से बहुत अच्छी है। क्योंकि वो काम वाले दिन भरपूर ऊर्जा के साथ आते है।
जबकि इसके उलट हिंदुस्तान में work pressure इतना अधिक रहता है कि यहां लोग इससे मर जाते है। पुणे की एना सेबेस्टियन , Earnest & Young में employee थी। जहां के काम के बोझ के चलते वह मर गयी। इसके बाद भी ये धन्ना सेठ संतुष्ट नहीं हुए क्योंकि इनको अभी भी कर्मचारियों की नसों में खून दौड़ता दिख रहा। जिसको चूस लेने की चाह इन्हें उकसा रही...!!
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