अपराध बोध और पवित्र स्नान
अपराध बोध और पवित्र स्नान : ***********************
एक नदी किनारे एक महात्मा रहते थे। महात्मा का सम्बोधन उन्हें उनकी सहृदयता और प्रेमभाव के कारण मिला। । महात्मा जी मनुष्यता से सराबोर और वैश्विक सोच से लबरेज थे। उनकी शिक्षाओं का इतना प्रभाव था कि आसपास कोई जातीय या धार्मिक वैमनस्यता दिखाई नही देती थी।
एक दिन उनके पास एक महिला आई। वह महात्मा जी के चरणों मे गिरकर रोने लगी। "महात्मा जी मैं पापिन हूँ। मेरे पाप क्षमा करिये। मेरे पाप हरिये महात्मा जी। मै पापिन हूँ"। महिला की आंखों से अश्रु धार निरन्तर बह रही थी। वह रोये जा रही थी। महात्मा का मन द्रवित हो रहा था। महात्मा जी अजीब असमंजस में थे कि उसको कैसे सांत्वना दूँ। चरणो में गिरी महिला को देखकर वे खुद को असहज महसूस कर रहे थे। उन्होंने बार-बार कहा कि आपने कोई पाप नही किया पुत्री। ऐसे नही रोते और जब पश्चाताप करके रो रही हो तो पाप वैसे भी नही बचता। आप उठिए और घर जाईये। मेरा आशीर्वाद आपके साथ है पुत्री।
लेकिन महिला जार-जार रोती ही रही। "आप मेरे पाप बख्शिये महात्मन। मैं तभी उठूंगी। नही तो मैं नदी में कूदकर आत्महत्या कर लूँगी। मेरे पापों का बोझ मुझे वैसे भी जीने नही दे रहे।"
महात्मा जी चाहते तो थे कि पूछें कि ऐसे क्या पाप किये पुत्री। जिसकी वजह से इतना व्यथित हो। लेकिन उनका बोध कहता था कि पश्चाताप में घिरे व्यक्ति से पाप पूछकर उसे हीन भावना में और नही धकेलना चाहिए। वैसे भी पश्चाताप के अश्रु गिरने के बाद पाप का बोझ कम हो जाता है। यही पाप मुक्ति है। महात्मा जी ने भाव विह्वल होकर कहा। अच्छा एक कार्य करो जिस नदी मे डूब कर मरना चाहती हो, जाओ उस नदी में स्नान कर आओ। इससे तुम्हारे पाप मुक्त हो जाएंगे।
महिला ने उस नदी में डुबकी लगाई और महात्मा जी के चरण स्पर्श किये। उनको अपने मन पर पड़े बोझ को हल्का होना बताया और अपने गंतव्य को रवाना हो गई। लेकिन उस रात महात्मा जी सोए नही। इधर से उधर करवट बदलते रहे। उनके शिष्य ने देखा कि महात्मा जी की नींद उचाट है। शिष्य ने महात्मा जी से पूछा, क्या हुआ महात्मा जी। आज आप बेचैन मालूम पड़ते हैं। क्या मैं बेचैनी की वजह पूछ सकता हूँ......? ?
महात्मा जी बोले, धार्मिकता में अंधविश्वास फैलने का डर सबसे अधिक रहता है। वहीं से अंध धार्मिकता का उदय होता है। आज लगता है कि मैने भी वही गलती कर दी ! शिष्य विस्मित हुआ। और बोला कि महात्मन ऐसा तो कुछ नही किया आपने।
नहीं बेटा आज ये हुआ है मुझसे ... अब ये महिला पूरे गांव में कहेगी कि अमुक जगह स्नान करने से पाप मुक्ति मिलती है। मेरे एक कथन ने किसी स्थान को अंध श्रद्धा का केंद्र बना दिया। अब लोग बड़े से बड़ा पाप करके यहां स्नान करके उसे धोने की कोशिश करेंगे। वह अपने स्थान पर रहकर उसकी ग्लानि में बदले में कुछ अच्छा काम करने की अपेक्षा यहां स्नान करने आएंगे। जबकि पाप तो पश्चाताप करने से कटते हैं। पाप का बोध होना ही सबसे बड़ा पश्चाताप है। जो कि कहीं स्नान ध्यान करने के नहीं जाता।
शिष्य महात्मा जी को इतना परेशान देखकर विचलित हुआ। उसने कहा, चलिए हम कुछ दिन के लिए कहीं चलते हैं गुरु जी। जगह बदली से मन बदली होगी। आप वैसे भी बड़े बरस हुए कहीं गए नही। गुरु शिष्य की बात से सहमत होकर तीर्थ पर निकल गए।
महात्मा जी अपने शिष्य के साथ छह माह तक तीर्थों का भ्रमण करते रहे। जब वापिस लौटे तो देखा नदी किनारे पवित्र पक्का घाट बन चुका था। पाप मुक्ति के लिए भारी संख्याओं में लोग डुबकी लगाने लगातार आ रहे हैं।
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