टेफ्लौन लीडर, अर्थात अति आत्मविश्वासी

टेफ्लौन लीडर अर्थात अति आत्मविश्वासी :          •••••••••••••••••••••••••••

सामान्यतः वही व्यक्ति सफल लीडर बनता है जिसमें लोगों को प्रेरित करने के गुण होते हैं।और प्रेरित आप तभी कर पाओगे जब आप खुद प्रेरणास्रोत बनोगे। इस प्रेरणास्रोत बनने के लिए व्यवहारिक रूप से परिष्कृत होना बहुत ज़रूरी है। अडिग, अजेय,जिज्ञासु,खुले विचारों वाले,भावनात्मक बुद्धिमत्ता, नेतृत्व क्षमता जैसे अनेक गुण लेकर ही कोई सफल लीडर बन सकता है। अब इन सारे गुणों को व्यवहार में समाहित रखने के लिए सबसे पहले खुद को बहुत मजबूत दिखाना आवश्यक है। बस इसे ही टेफ्लौन लीडर कहतें हैं। वह लीडर जो सदैव खुद को बेहद मजबूत दिखाता हो। जो कभी भी अपनी कमजोरियां किसी के भी सामने नहीं आने देता। वे हमेशा ही अति आत्मविश्वासी दिखते हैं। 

लेकिन क्या इस तरह की मानसिकता और व्यवहारिकता लेकर कोई मजबूत और प्रेरक लीडर बन सकता है। क्योंकि दिखाने के लिए तो सब कुछ सामने अच्छा अच्छा है पर अंदर कहीं वह जद्दोजहद या असफलताएँ भी मायने रखती होंगी। जिनसे लड़ कर वह यहां तक पहुंचा है। 

टेफ्लौन लीडर बनने के लिए जरूरी नहीं rigid रहें । थोड़े व्यवहारिक लचीलेपन के साथ एक उम्दा लीडर खुद के अंदर पैदा किया जा सकता है। 

1-आत्मचिंतन आवश्यक : सबसे पहले आत्मचिंतन पर ध्यान देना जरूरी है । जब ख़ुद ही खुद का आंकलन किया जाता रहेगा तो अपनी उपलब्धियों के साथ गलतियों की भी पहचान होएगी। हम कौन है क्या बन रहे हैं और कहां तक जा सकते हैं क्या हम खुद को सीमित तो नहीं कर रहे....ऐसे प्रश्नों का हल आत्मचिंतन से ही मिलेगा। 

2-जिज्ञासु होना : दिमाग को खोल कर अगर चहुँमुखा सोचना है तो जिज्ञासु होना अति आवश्यक है। नई चर्चाएं और खुला आदान प्रदान किसी व्यक्ति की रेंज को बढ़ाता है। हमेशा सही हो ये जरूरी तो नहीं। इसलिए जब गलत होए तो चर्चा और सलाह से सही करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अपनी जिज्ञासा को सिर्फ अपने काम से ही नहीं बल्कि दूसरे विषयों में भी जैसे संस्कृति, टेक्नोलॉजी, राजनीति, साहित्य वगैरह के लिए भी जिज्ञासु होना चाहिए। ज्ञान जितना भी हो कम ही होता है। 

3 - बदलाव को स्वीकारना : आत्मनिर्भरता और स्थिरता जैसे गुण जो कभी मददगार हुआ करते थे। आज के समय में बाधा हैं। आसपास की परिस्थिति, लोगों का व्यवहार, काम करने का पैटर्न वगैरह बहुत सी चीजें बदलती रहती हैं।इसलिए कभी भी खुद को static नहीं रखना चाहिए। जितना बदलाव को स्वीकार करके खुद को लचीला बना कर रखेंगे। उतना ही आगे बढ़ने के रास्ते खुलेंगे। 

4 - कमजोरी को स्वीकारना : मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ। कभी गलतियां नहीं करता। हमेशा perfect रहता हूँ। ये सोच एक स्तर पर व्यक्ति को बांध देती है। क्योंकि नई गलतियां नए अनुभव को जन्म देती हैं। जितना सीखेंगे उतना मजबूत बनेंग। एक बच्चा भी अपने कई इम्तहानों में फेल हो जाता है। पर इससे वो पढ़ना तो नहीं रोकता। बल्कि और मेहनत से आगे पास होने की कोशिश करता है। आलोचनाओं और असफलताओं को सीखने के पायदान की सीढ़ियां मान कर चलना चाहिए। 

5- भावनात्मक बुद्धिमत्ता : लीडर बनने के बाद अगर कोई भावनात्मक रूप से शिथिल हो जाता है। तब वह बाकी लोगों से connected नहीं रह पाता। एक बेहतरीन लीडर वो होता है जो सबकी सुनता है। सबका ध्यान रखता है । सबकी जरूरतों पर मदद करता है। क्योंकि जब लीडर सबके साथ खड़ा रहेगा। तो दूसरे भी उसे लीडर बनाने के लिए सदैव हाथ बटाऐंगे। 

इसलिए सफलता के लिए नरम, सहयोगी,लचीला और भावनात्मक समझ होना जरूरी है। तभी एक अच्छे लीडरशिप के साथ प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलेगा। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

Comments