कहीं वो हमें संभाले हुए है
कहीं वो हमें सम्भाले हुए है....! **********************
एक किस्से से इस लेख की शुरुआत करती हूं...........
एक आदमी हिलते हुए से जर्जर पुल पर चलते हुए नदी पार कर रहा होता है। उसे ये डर सता रहा है कि कहीं पुल टूट गया तो मैं मर सकता हूँ। ऐसे में वह मन ही मन ईश्वर को याद करने लगता है और मदद के लिए ईश्वर से प्रार्थना भी करता है । तभी वह देखता है कि पुल के उस तरफ़ ईश्वर खड़े हुए हैं। वह एक एक कदम बढ़ाते हुए बुरी तरह डर रहा था। सो वह ईश्वर को देखते हुए उनसे पास आकर सहायता करने की गुहार लगाने लगा। ईश्वर को स्थितियां संभालने के लिए बाध्य करने लगा.....लेकिन ईश्वर वहीं रहे, उसके पास नहीं आए। वह पुल के दूसरी तरफ ही खड़े रहे। ये देख मनुष्य क्रोधित हो गया और ईश्वर विरोधी बातें मन में सोचने लगा। बड़ी मुश्किल से किसी तरह धीरे धीरे हिलते डुलते पुल पार कर पाया। पर दूसरी तरफ पार करने पर देखता है कि ईश्वर उस टूटे हुए पुल को पकड़ कर खड़े हैं। उसके जीवनरक्षक बनकर। इसलिए परिस्थितियाँ ऊपर नीचे यदि हो भी रही हों तो ऊपरवाले का भरोसा कभी नहीं छोड़ना चाहिए। अपने ईश्वर पर विश्वास हमें विपरीत से लड़ने की शक्ति देता है....उसके कल्याण करने के कारण और तरीके अद्भुत हैं.....!
अब इस किस्से में विश्वास और धैर्य का होना क्यों महत्वपूर्ण है समझते हैं। जब भी स्थितियां अपने पक्ष में ना होयें सबसे पहले अपने अंदर धैर्य जगाना होगा। क्योंकि विचलित मन कभी भी ये नहीं समझ सकता कि कहीं कोई एक शक्ति है जो इस पूरे ब्रम्हांड को संभाले और चलाए हुए है।
"सब दिन नहीं होत एक समान" एक ढर्रे पर चलते हुए कभी जिंदगी एक जैसी नहीं रहती। बदलाव नैसर्गिक प्रक्रिया है। जिस तरह भोजन में अगर एक ही स्वाद रोज रोज खाएं तो ऊब होएगी। फिर कोई दूसरा स्वाद आजमाने की तलब लगने लगेगी। इसी तरह जीवन भी नमकीन मीठे खट्टे कड़वे आदि कई तरह से पलों से मिलकर बना है। जिसमें परमपिता पर विश्वास और स्थितियां बदलेगी ये धैर्य जीवन को आसान बना सकता है।
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