आधुनिकतावाद बेशर्मी की हद तक
आधुनिकतावाद बेशर्मी की हद तक : ••••••••••••••••••••••••••••••
हम आधुनिकता की तरह तेज़ी से बढ़ रहे हैं रोज कोई ना कोई ऐसी चीज़, व्यवहार, फ़ैशन या दिनचर्या जरूर अपनाना चाहतें हैं जिससे हमें स्मार्ट और आधुनिक माना जाए। अगर जमाने के साथ चलना है तो खुद को आधुनिक और अतिविकसित दिखाना ही होगा। पर इस चलन में संस्कार और उन वैल्यूज को अनदेखा कर दें जो एक सभ्य जीवन के लिए आवश्यक हैं तो इसे वीभत्सता नहीं तो और क्या कहेंगे ...!!
पहले इस चित्र को देखिए। फिर उस संदर्भ में मेरे द्वारा की गई उस की आलोचना को समझिए। चित्र पटाया के एक पुरुष टॉयलेट का है। जिसे बनाने वाले ने क्या सोच कर बनाया। समझ से परे है। आखिर उस आर्किटेक्ट को भी क्या कहें जिसने एक गंदी सोच के साथ आधुनिकता को जोड़ा। कुछ नया कुछ अलग बनाने की चाह में उसमें कितनी घृणित तस्वीर का खाका खींचा है इसे देखिए और समझिए। जिस स्थिति को देखकर हम शर्मिंदगी महसूस कर रहे उसने उसे एक बड़ी जरूरत के साथ जोड़ दिया। इस जेंट्स टॉयलेट में सदैव बड़े आदमी ही नहीं छोटे बच्चे और युवा लड़के भी तो आते होंगे। उन्हें उनकी उम्र से पहले ये टॉयलेट क्या सीखाना चाह रहा है।
कुछ सत्य सार्वभौमिक (universal truth) होते हैं जैसे स्त्री पुरूष का सम्बंध, स्त्री का गर्भवती होना,युवतियों के मासिक से होना वगैरह। जो हर परिवार का बड़ा जानता है समझता है। पर फिर भी इन सत्य को सरेआम कहा जताया या प्रर्दशित नहीं किया जाता। क्योंकि इन सत्य को लज्जा की एक सीमा में बांधा गया है। ये सीमा उम्र के बंधनों से भी जुड़ी है। अब किसी 5 साल के बच्चे को मां पिता के सेक्स संबंधों के बारे में दिखाया या समझाया नहीं जा सकता। उसे उसकी युवा बहन के मासिक होने की प्रक्रिया नहीं बताई जा सकती। इसलिए जरूरी होता है कि कितने भी आधुनिक हो जाओ पर कुछ उम्र, संस्कार और मर्यादा की सीमाओं का पालन किया जाए।
विदेशों में हिंदुस्तान के मुकाबले आधुनिकता कुछ ज्यादा ही है। पर बात वही घूम फिर कर आ जाती है कि आधुनिक होने का ये मतलब नहीं कि पति पत्नी अपने बच्चों के सामने शारीरिक संबंध बनाएंगे। बस यही बात है जो शायद आधुनिकता से अभी भी कतरा भर दूर है।
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
Comments
Post a Comment