संक्रांति की खिचड़ी
संक्रांति की खिचड़ी : •••••••••••••••••••••
विधि के लिए तो आप जैसे चाहें सबको मिलाकर जैसे चाहें पका दें, बनेगी खिचड़ी ही। जैसे चाहें पका लें, कोई भी चीज आगे पीछे हो जाये तो भी न नाम बदलेगा न गुण और न ही स्वाद में कमी आयेगी। है न कमाल की बात। और एक खास बात बताऊं अगर इसे बिना तेल, घी के भी बनायेंगे तो भी स्वाद में कोई खास गिरावट नही आयेगी। विज्ञान की भाषा मे एक शब्द आता है सिंक- अर्थात इससे उसके अवयव को कितना भी निकाल लें या कितना भी जोड़ दें इसमें बदलाव नही होता, क्योंकि सिंक का आकार या आयतन बहुत विशाल होता है। स्वाद के मामले में हम खिचड़ी को स्वादों का सिंक कह सकते हैं।
संक्रान्ति का अर्थ है सम्यक दिशा में क्रांति जो सामाजिक जीवन का उन्नयन करने वाली तथा मंगलकारी हो। मकर संक्रांति पर सूर्य नारायण दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करते हैं। हिन्दू समाज मे समस्त शुभ कार्यों का प्रारंभ सूर्य के उत्तरायण होने से प्रारम्भ होता है। सामान्य भाषा मे हम कहते हैं कि मकर संक्रांति के बाद से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। इसे नकारात्मकता की शून्यता और सकारात्मकता के उद्भव के रूप में भी देखा जाता है। मकर संक्रांति का विशेष धार्मिक और पौराणिक महत्व भी है। आज के दिन तड़के सुबह स्नान करना उत्तम माना जाता है। तिल का विशेष महत्व है अतः स्नान के जल में भी तिल के दाने डाले जाते हैं। तिल के पकवान लड्डू आदि बनाये जाते हैं और तिल का ही प्रसाद चढ़ाया जाता है।
तो जब अवसर मकर संक्रांति का अवसर हो और खिचड़ी की धूम न हो, यह कैसे संभव है। इसीलिये कहानी घूम फिर कर खिचड़ी पर चली आती है। खिचड़ी नाम का शाब्दिक अर्थ यही है कि- जो कुछ भी उपलब्ध है, उसे मिला जुला कर बनाया गया व्यंजन।
तभी तो जब कोई अवांछित वस्तु किसी खास चीज में मिला देता है तो बरबस ही हमारे मुँह से निकल आता है, ये क्या किया भाई तुमने खिचड़ी कर दिया सब। मेरी राय में खिचड़ी सबसे आम भारतीय व्यंजन है, जो हर स्थान में बनाया, परोसा और पसंद किया जाता है। मरीज को खिलाना है तो पतली मूंगदाल की खिचड़ी, जमकर पेटभर उच्च पोषण प्राप्त करना हो तो समस्त सब्जी, दाल, चावल, घी, विविध मसाले आदि से इसे तैयार किया जाता है। प्रसाद के रूप में परोसना हो तो उच्च गुणवत्तायुक्त किन्तु कम मसालेदार यानि कि सात्विक खीचड़ा। अलग अलग स्थानों में इसके अलग अलग नाम है।
यह एक ऐसा स्वादिष्ट भारतीय व्यंजन/ भोजन प्रसाद है, जिसे बनाना कभी सीखना नही पड़ता, मतलब यह है कि- जिस भी तरह चाहो छौंक / बघार लगा दो, फिर जितनी भी कटी पिटी सामग्री हैं, जैसे- प्याज, मिर्च, लहसन, कड़ी पत्ता, अनाब- शनाब सब डाल दो। थोड़ा भून लेने के बाद सब्जियां मटर, साग भाजी जो उपलब्ध हो डाल दो। मर्जी पड़े तब तक पकने दो। तब तक इधर उधर मटकना हो तो मटक आओ। आने के बाद चावल और दाल धोकर डाल दो। चम्मच चलाओ। स्वादानुसार नमक डाल दो। कुछ कम ज्यादा करना हो तो अभी भी विकल्प है। सब कुछ डाल दिया गया है कुछ और न बचा हो तो ढक्कन ढंक कर पकने के इंतजार करें। बीच बीच मे 2-3 बार चम्मच चलाऐं और धीमी आंच पर पकाएं और पक जाने पर बिना इंतजार पेट पूजा कर लें।
आसान विधि, बेहतरीन स्वाद, उच्च पोषण गुणवत्ता, पाचक, हल्का और झंझट मुक्त होने के कारण यह कुआरों कि प्रिय तो है ही साथ ही परेशान शादिशुदाओं की राहत भी है। धर्मपत्नी के मायके जाने पर यही सूझता है। कहीं नॉकरी पेशा लोगो का समय बचाऊ भोजन है तो कहीं बुजुर्गों का सहारा, कहीं पिकनिक की पसंद है तो कहीं पैसों की बचत। कही यह पोषण है तो कही हल्का भोजन। जिसने जिस रूप में चाहा वैसा अपनाया इसे। नाम की बात करें तो अवयवों और भाषा के हिसाब से थोड़े बहुत बदलाव के साथ खिचड़ी शब्द सर्वपरिचित है। लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अगर देखा जाए तो इसमे कार्बोहायड्रेट, बसा, प्रोटीन, मिनरल्स और विटामिन्स सब कुछ होते हैं। और खिचड़ी के चार यार दही, पापड़, घी, अचार के साथ तो यह बेलेंस डाइट का फार्मूला बन जाती है।
★◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆★
Comments
Post a Comment