अव्यवस्था इतनी भी बुरी नहीं
अव्यवस्था इतनी भी बुरी नहीं : •••••••••••••••••••••••••••••
सामान्यतः अव्यवस्था, गंदगी, फैलावड़े को आलस्य का प्रतीक मानते हैं। परन्तु अव्यवस्था कोई नैतिक कमजोरी नहीं है। कुछ लोग व्यवहार से बहुत व्यवस्थित नहीं होते। उनका समान, कपड़े ,रसोई, टॉयलेट वगैरह बहुत साफ सुथरे और व्यवस्थित नहीं रहते। ऐसा इसलिए नहीं होता कि वह ऐसा चाहते ही नहीं। व्यवस्थित ना रहने के बहुत से reason हो सकते हैं। समय की कमी, अतिरिक्त कार्य बोझ, घर में ज्यादा सदस्य आदि और भी कई reason हो सकते हैं जिनकी वजह से घर में अव्यवस्था पसरी रह सकती है।
कौन नहीं व्यवस्था, सुंदरता और सलीके में रहना चाहता है। पर आज की व्यस्त जिंदगी में घर, दफ्तर और समाज तीनों में सामंजस्य बना कर चलना मुश्किल हो जाता है। कोई ना कोई एक क्षेत्र तो प्रभावित होगा ही। यदि व्यक्ति स्वभाववश सफाई पसन्द है तो वह इसके लिए इधर उधर से समय का जुगाड़ कर ही लेगा। परन्तु यदि व्यक्ति बहुत सफाई पसन्द नहीं है और उसे माहौल की मजबूरी के चलते सफाई और व्यवस्था रखनी पड़े तो ये उसके लिए बंधन हो जाता है। बस यही महत्वपूर्ण है कि दिमाग में दबाव बनाकर घर को साफ रखना खुद को तकलीफ देना है। स्वच्छता जरूरी है पर उसको बनाये रखने का दबाव दूसरे अन्य कामों को प्रभावित करे तो और अव्यवस्था फैलेगी। अव्यवस्था मानसिक सुकून से बड़ी नहीं है। अव्यवस्थित लोग अगर दूसरों की तरह सफाई पसन्द नहीं है तो इसका मतलब ये नहीं कि वह गैर जिम्मेदार या असफल हैं।
एक व्यवस्थित और साफ सुथरा घर किसी के परिपक्व और सफल होने का मापदंड नहीं हो सकता है। अव्यवस्था और रचनात्मकता के बीच गहरा संबंद्ध है। गहरी मानसिकता वाले लोग अक्सर अव्यवस्थित होते हैं क्योंकि उनका दिमाग time management और प्राथमिकता तय करने के मामले में कमजोर होता हैं और सामान्य तरीके से नहीं सोच पाता। लेकिन कुछ research के अनुसार ऐसे ही व्यक्ति अधिक रचनात्मक सोच पाने में सक्षम होते हैं। शायद ऐसा इसलिए हो सकता है कि उनका ध्यान सिर्फ अपने कार्य पर focussed रहता है। वह कार्य अच्छे से करना चाहते हैं उस कार्य को करने में अगर फैलावड़ा हो रहा हो तो वह इसे बुरा व गलत नहीं मानते।
इसलिए अव्यवस्था इतनी भी बुरी नहीं। क्योंकि व्यवस्था सफाई सुघड़ता दिखाती है। जबकि अव्यवस्था रचनात्मकता दिखाती है।
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