प्रेम की तरंगों का विस्तार
प्रेम की तरंगों का विस्तार : •••••••••••••••••••••••••
हम समाज में रहते हैं और एक सामाजिक प्राणी होने के नाते सबके सुख दुःख में हिस्सेदार बनकर जुड़े रहते हैं। परिवार दोस्त रिश्तेदारों सभी के साथ हमारा साझेदारी का रिश्ता होता है। जब हम मन से भारी होना महसूस करते हैं कोई अपना ढूंढते है जिससे कह सुन कर कुछ हल्का महसूस कर सकें इसी तरह दूसरों की व्यथा पीड़ा को भी सुन कर समझकर उनके साथ समय बांटना भी हमारी जिम्मेदारी होती है। इसी से एक समाज बनता है।
जब कोई दुख -दर्द, मन की बातें दूसरे से शेयर करता है, और दूसरा उसे सब कुछ ठीक हो जाने का ढांढस बंधाता हैं । जिससे वह तो हल्का हो जाता है परन्तु वह साथ दे रहा व्यक्ति भारी हो जाता हैंं। क्योंकि वह चिंता और तकलीफ़ की भावनाएं उसके मन को व्यथित करने लगती हैं। कहीं ना कहीं वह उसकी सोच को प्रभावित करती हैं। जबकि असल में वह दुख और कुछ नहीँ, प्रेम की कमी के कारण हैं। उनके अपनों के बीच कहीं ना कहीं प्रेम को समझने और महसूस करने की कमी हो रही। जिससे उनको दुःख और पीड़ा सहनी पड़ रही है।
अब जैसे ज्ञान के संदर्भ में कहा जाता है कि ज्ञान जितना बांटोगे उतना बढ़ता है। उसी तरह प्रेम की तरंगों को जितना विस्तार दिया जाएगा वो उतना फैलेंगी। जब कोई दुःखी परेशान पास आये तो उसको तथा उससे सम्बन्धित व्यक्तियों को प्रेम और की शांति की तरंगे दो। जिससे सब ठीक होने लगेगा तथा उससे देने वाले की शक्ति भी कम नहीँ होगी। अपितु और बढ़ेगी।
किसी के दुख मे दुखी हो जाना, अनजाने मे उसके दुःख को और बढाना होता है। सुनने वाले के मन में जब हमदर्दी उमड़ती है, तो कहते हैं कि बेचारा कितना दुखी है, ईश्वर ने उसके साथ ऐसा क्यों किया ? उसके प्रति बार बार बेचारा, दुखी, बदनसीब, परेशान जैसे शब्द दिमाग मे रखने से उसका दुख तो और बढ़ ही रहा है साथ ही सुनने वाला भी दुखी होता हैं।
ऐसे में इसका उल्टा करना चाहिए। उसको प्रेम से भरपूर करो। उसके प्रति प्रेम के शब्द कहो और सोचो । उसे किस्मत वाला,सुखी , भाग्यशाली, शांत जैसे शब्द उसके लिए मन मे रखो चाहे वह कितने भी निम्न स्तर पर क्यों ना हो । इस से वह अपने दुखों से बाहर निकल सकता है और जो अच्छे शब्द, विचार हमने सोचे हैं उससे हमारा मन भी सुखी हो रहा मजबूत हो रहा।
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
Comments
Post a Comment