कुम्भ की महिला सन्यासिनें
कुंभ की महिला सन्यासिनें : *********************
इस समय भारत में महा कुम्भ का आयोजन हो रहा है। साधु सन्यासी और सामाजिक जब जीवन जीने वाले भी इस पुण्य आयोजन में सहभागी बनने का सुख उठा रहे। इसमें महिला संन्यासिनों का भी एक वर्ग आया है। जिनके जीवनशैली और नियम धीयम को इस तरह समझा जा सकता है कि उन्हें क्या अपनाना होता है और क्या त्यागना.....
जो भी महिलाएं सन्यासिनें बनने आती है। उनको अवधुतानी कहा जाता है। इसके लिए उनको सबसे पहले दीक्षा लेनी पड़ती है। इसके लिए उन्हें पूरे चौबीस घण्टे निर्जला उपवास रखना होता है। जिसमें वह अबोला भी रखती है अर्थात कुछ भी बोलती नहीं है चुप रहती है। ऐसा इसलिए कि उनका मन सिर्फ़ स्वयं से ही बात करें। किसी अन्य की ना सुने ना जवाब दे।
दिन पूरा होने के बाद गंगा जी में स्नान किया जाता है और फिर वही घाट पर उनका मुंडन किया जाता है। उनके सर बिल्कुल चिकना कर दिया जाता है। इसके बाद उनसे ही उनका पिंडदान करवाया जाता है। जिससे उनको सामाजिक जीवन में मृत बनाकर पारलौकिक जीवन में प्रवेश दिलाया जाता है। इसके लिए उनको अपना पूर्व गृहस्थ भी त्यागना और भूलना पड़ता है। दीक्षा लेने के बाद इन्हें सन्यासिनें कहा जाता है।
यह सन्यासिनें एक बिना सिला वस्त्र जिसे गत्ती कहते हैं उसी को लपेट कर पहनती हैं। उन्हें कोई रंग बिरंगे कपड़े पहनना वर्जित होता है। वह साज श्रृंगार से बिल्कुल दूर हो जाती है। सन्यासिनें बनने की शुरुआत में उन्हें एक गुरु चुनना होता है जो उन्हें मंत्रों और दीक्षा का पाठ करवाता है। और इस प्रयास में अभ्यस्त कराता है। अपनी भक्ति को प्रकांड करने के लिए ये सन्यासिनें 12-12 घण्टे भी मंत्रों का अभ्यास करती है।
ईश्वर को पाने के लिए इन संन्यासिनों को जगत त्याग करके सिर्फ परमात्मा में लगन लगानी पड़ती है। दीक्षा का प्रमुख उद्देश्य ये होता है कि सन्यासी महिला भक्ति मार्ग पर चलते हुए अन्य को भी उस पट के लिए प्रोत्साहित करें।
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