बालिका दिवस, उम्मीद बाकी है
बालिका दिवस, उम्मीद बाकी है : ••••••••••••••••••••••••••••••
आज 24 जनवरी राष्ट्रीय बालिका दिवस है। हम बच्चियों का होना celebrate कर रहे हैं। अच्छी बात है। क्योंकि बच्चियां हैं तो सृष्टि कायम है। यही बच्चियां बड़ी होकर एक औरत बनती हैं। जो बहू पत्नी मां बनकर किसी दूसरे परिवार में जाती हैं। और एक नए परिवार के साथ एक नए रिश्ते में जुड़कर नई पीढ़ी को जन्म देती हैं। औरतें ना हों तो अकेला पुरूष क्या कर लेगा....सबसे महत्वपूर्ण बात की वह कोख कहाँ से लाएगा जहां वह खुद रहकर जन्मा.....
पर इन सबसे परे बेहद दुख होता है जब इन्हीं छोटी बच्चियों को अपनी हवस मिटाने के लिये सुलभ साधन समझ लिया जाता है। बड़ी लड़कियां या औरतें झांसे में नहीं आएंगी तो इन नासमझ बच्चियों को ही निशाना बनाओ। वह बच्चियां जिन्हें इस कुकृत्य की बिल्कुल समझ ही नहीं। वह इसके होने का भीषण दर्द सहती है। अपने कटे फटे अंगों के साथ जीवन भर इस याद को झेलती है।
अब समझना पूरे समाज को है कि बच्चियों को कोमलता से सहेजना जरूरी है। वो बेहद नाजुक होती है तभी उनके परिपक्व होने तक उनकी सुरक्षा और संरक्षण की हमारी जिम्मेदारी बनती है। ये जिम्मेदारी घर से शुरू करने के लिए प्रत्येक घर के पुरुष और युवा लड़कों को महिला सम्मान के स्वभाव का गुण खुद में लाना होगा।
कहीं एक quote पढ़ा था कि दुनिया से अगर महिलाओं को हटा दिया जाए तो पूरी विश्व की अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी। इसलिए एक औरत का होना एक परिवार के लिए ही नहीं, समाज के लिए ही नहीं, देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरे संसार के लिए जरूरी है। लेकिन औरत बनने तक का सफर एक बच्ची होने से होकर जाता है। इसलिए उन्हें सहेजना बहुत जरूरी हैं।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
Comments
Post a Comment