अनजान अविदित दर्द के पीछे की वेदना ...............!
कल के समाचारों में एक समाचार सुर्ख़ियों में था वह है एक गाँव की पंचायत द्वारा एक नाबालिग के बलात्कार का फरमान सुनाना। किस्सा कुछ यूँ है की एक युवक, एक युवती से बलात्कार की कोशिश करता है पकड़े जाने पर उस परिवार के सदस्यों से उसकी हाथापाई हो जाती है जिसकी शिकायत पंचायत में पहुंचती है और दोषी पाये जाने पर उसके ही परिवार के सदस्यों में से एक नाबालिग बच्ची से पीड़ित परिवार के एक सदस्य को बलात्कार का फरमान जारी कर दिया जाता है अतः दोषी युवक के बदले उसके परिवार की छोटी बच्ची शिकार बनाई जाती है। आखिर यह सब है क्या ……… पहली बात तो ये की पंचायत इस तरह का फरमान दे ही कैसे सकती है? दूसरी बात बलात्कार का बदला क्या बलात्कार ही होना चाहिए ? तीसरी बात उस युवक की गलती की सजा किसी और को क्यों ? चौथी और सबसे तकलीफदेह बात कि इस सजा के लिए एक बच्ची को क्यों चुना गया ? पुरुषों का इस तरह का अपनी मर्यादाओं का लांघना अब उन छोटी बच्चियों को भारी पड़ने लगा है जो इस तथ्य से अनजान है। आखिर क्यों पुरुष वर्ग अपनी भावनाओं और शारीरिक इच्छाओं पर अंकुश नहीं रख पा रहा। क्षणिक सुख के लिए वह किसी के जीवन के साथ खिलवाड़ करने से भी बाज नहीं आते। परिवार की मर्यादाओं को कहीं पीछे छोड़कर उनके लिए अब सिर्फ उनकी शारीरिक आवश्यकता की प्राथमिकता सर्वोपरि हो गयी है। इस के लिए वह समाज के सारे नियम कायदे भी ताक पर रखने को तैयार है। लगभग रोजाना ही इस तरह की घटनाएं ये बताती है की हम ही कहीं अपने बालकों में वह संस्कार नहीं डाल पा रहे की वह नारी की इज़्ज़त करना सीखे न की उसे इस्तेमाल करना। ऐसा क्या है जो उन्हें विवश करता है ऐसा घृणित कार्य करने का प्रयास करने के लिए। क्या अपने ही शरीर पर उनका वश नहीं या वह ऐसे समाज का हिस्सा बन चुके है जहाँ उनके लिए यह एक आम सा कार्य है। जरूरी है की बचपन से ही बालको के अंदर ऐसे संस्कार डालें जाएँ की उसकी सोच शुद्ध हो, सात्विक हो इसके लिए योगा का भी प्रयोग किया जा सकता है। साथ ही साथ ईश्वर के प्रति सजग रहना भी इन कार्यों के प्रति अनिच्छा पैदा कर सकता है। परिवार में स्त्रिओं का सम्मान भी उन्हें इस बात का एहसास कराएगा की ऐसा जीवन में उन्हें भी आगे कायम रखना है यदि सोचा जाये तो ऐसे अनेकों उपाय मिल जाएंगे जो इस तरह की घटनाओं में कमतरी ला सकते हैं। जरूरी है इसे समझे और इसे समय रहते लागू करें। समाज में जिस कार्य को विवाह के बाद एक परिवार को आगे बढ़ाने का माध्यम माना जाता रहा है उसे पहले न करने के संस्कार हम ही अपने बालकों में डालेंगे। आज कहीं वह ईश्वर भी पुरुष को ऐसी शक्ति दे कर शर्मिंदा जरूर होता होगा क्यों की उसने भी नहीं सोच होगा की पुरुष इस का उपयोग इस तरह कर, स्त्री को प्रताड़ित करेगा। ईश्वर की लाठी में आवाज़ नहीं होती यह सब जानते है कहीं ऐसा न हो की दुष्परिणाम ऐसे हो जाए की फिर उनसे बचने का कोई रास्ता न बचे। ये किसी भी रूप में सामने आ सकते है। एड्स जैसे रोग इसी का दुष्परिणाम है। आगे अभी और क्या क्या देखना है ये तो ईश्वर ही जानता है पर ये तो जरूर है की जो भी होगा अच्छा नहीं होगा अगर पुरुष समाज नहीं सुधरा तो। अब बहुत हो चुका इसे रोको क्योकि हर पुरुष किसी न किसी रूप में हर औरत से जुड़ा है चाहे वह माँ, पत्नी ,बहन , भाभी चाची काकी ताई मामी मौसी बुआ या अन्य और कोई भी रिश्ता हो ………… इज़्ज़त करो , और उम्र का लिहाज़ करो अपने आप सब ठीक हो जायेगा।
Comments
Post a Comment