उत्पीड़न में साथ ,एक स्त्री का हाथ……………!  

चलिए आज बात करते हैं वर्तमान के सबसे संवेदनशील विषय की ……… कल ही सरकार ने बजट प्रस्तुत किया है। उसमें निर्भया क्राईसेस मैनेजमेंट केंद्र खोलने का प्रावधान बनाया गया है जिसमे एक प्रताड़ित स्त्री को बिना सवाल पूछे तुरंत ही सहायता मिलेगी।  ये सहायता चिकित्सिकीय, कानूनी,मनोव्यज्ञानिक और आर्थिक स्तर की होगी।  जरूरी भी है ,कि  शिकार महिला उन सवालों के जवाब देने से बची रहें जो की उनकी तकलीफ को बढ़ाती हो।  जिस लम्हे को वो अपने जीवन से अलग करना चाहती हों उसे कुरेद कर और सामने  न लाया जाये। स्त्री सदा से ही इस पक्ष में पुरुष से कमजोर रही है और इसी का फायदा समाज ने हमेशा उठाया  है।
          इस मामले में समाज कह कर खाली पुरुषों  का ही नाम नहीं लिया जा रहा है।  इसमें स्त्रियां भी शामिल है। ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जाएंगे जिसमे एक स्त्री ही स्त्री के शोषण के लिए उत्तरदायी  रही है। एकजुटता यहीं  कमजोर पड़ती है जिसका फायदा पुरुष समाज को मिलता है। यह समझना बेहद जरूरी है की हम खुद को  क्यों कठपुतली बना कर पुरुष के हाथों में सौंप रहें है। यदि इस क्राईसेस मैनेजमेंट केंद्र  में सिर्फ स्त्री कार्यकर्ता  ही रखीं  जाये तो क्या ये विश्वास किया जा सकता है कि एक स्त्री दूसरी स्त्री की तकलीफ को ईमानदारी से समझ कर उसके निदान में मदद करेगी। इसे ऐसे समझिए कि एक स्त्री जो प्रसव के असहनीय दर्द से कराह रही होती  है  उसे सबसे ज्यादा वह नर्स ही सुनाती है जिससे सहानुभूति की उम्मीद की जाती है  वह भी एक स्त्री है और शायद वो भी इस तकलीफ से गुजरी होगी।  उस समय जब दर्द चरम सीमा पर हो और होने वाली माँ को एक हाथ की जरूरत होती है जिसे थाम कर वो दर्द भूल सके उस समय हाथ थामने के बजाये उसे ताने मारना कि  वह कोई अकेली स्त्री नहीं है सब ही इस दर्द से गुजरते हैं।क्या यह सही है ? पर ऐसा होता है। स्त्री अपनी शारीरिक बनावट को समझते हुए दूसरी स्त्री से सुहानुभूति रखे यही सही है।यह सोच बनी रहनी चाहिए कि उसे भी उसी दर्द से गुजरना होगा यदि उसके साथ कोई  दुर्घटना हो जाती है। इस विचार के साथ अगर यह केंद्र काम करेगा तभी इसका लाभ हर उस औरत को मिलेगा जो जरूरतमंद है। परिवार में भी एक सास ही बहु की दुश्मन बन कर उसे दहेज़ या अन्य काम काज के लिए प्रताड़ित करती है जबकि बहु के रूप में उसने भी हो सकता कुछ ऐसे ही दिन गुजारें हों कहने का तात्पर्य यह है कि पहले स्त्री को ही स्त्री की तकलीफ समझनी होगी उसके बाद हम पुरुष के अन्याय का मुहतोड़ जवाब दे सकते हैं । चाहे वह अन्याय किसी भी रूप में हो। स्त्री को ही स्त्री के लिए आवाज उठानी होगी। अनेक स्त्रियां जब मिल कर साथ खड़ी होंगी तब एक अकेला पुरुष कुछ नहीं कर पायेगा। इस लिए एकता की शक्ति बनाये रखने का समय यही है तभी इस तरह की  योजनाएं और इनसे जुड़े केंद्र सफल होंगे। सरकार की हर योजना  को सफल बनाना हमारे ही हाथ है बशर्ते उसमे हम अपना नहीं , हम सबका लाभ तलाशें ……………………………  

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