विकल्पों के सेतु का निर्माण करें अभिभावक ……!
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संतान होने के उपरांत विवाहित जीवन किस तरह बदल जाता है इसका अंदाजा सभी को है। पर कहते है न कि शादी का लड्डू जो खाए सो पछताए जो न खाए तो पछताए। अर्थात किस स्थिति का सामना करना पड़ेगा यह उस स्थिति में जा कर ही पता चलता है। लाख कोई समझाए , शिक्षा दे या अपने अनुभव बताये सब उस समय अनुसार बेमानी हो जाते है जब स्थिति कुछ और मांग कर रही हो। क्या कभी हम ने ये सोचा है की आज हमारा बच्चा जिस स्थिति में है या जो कर रहा है उस में हमारा भी योगदान है।
यदि बच्चा अच्छा निकल जाये तो हर अभिभावक श्रेय लेने के लिए अपने पालन पोषण की गुण गाथा गाने लगते है जब की यदि बच्चा कही अनुचित करने लगता है तो घर से बाहर के माहौल को दोषी बताने लगते है। समस्या उपजती यही से है आप बाहर की स्थितियां नहीं सुधार सकते। लेकिन उन परिस्थितियों को घर में एक उचित वातावरण में उपजा सकते है। समय अनुसार बदलाव जरूरी है।आज दो पीढ़ियों में अंतर का सबसे बड़ा कारण यही बदलाव है। इस बदलाव को न चाहते हुए स्वीकार तो कर लेना पर सामने आने पर उसके खिलाफ प्रतिक्रियाएं देना एक गहरी खाई खोद देता है अभिभावक और संतान के बीच।
समाज में अपना स्तर बनाए रखने के लिए आप जिन कार्यों की आजादी अपनी संतान को देते है पहले उसे दिल से स्वीकार करें। या फिर उसे थोड़े संशोधित तरीके से स्वीकार करने के लिए प्रयास करें। उदाहरण के तौर पर …… बच्चो को अकेले पार्टी करना अच्छा लगता है जरूर भेंजे , पर यदि हो सके तो आप भी जाएँ और थोड़ी दूरी बनाते हुए आस-पास ही रहकर उन्हें अपने होने के अहसास से अवगत कराते रहें। ये भावना सुरक्षा और बंधन दोनों ही लिहाज से उचित है। उनके संगी साथी भी आप के होने के कारण उन्हें कुछ भी नाजायज करने के लिए नहीं उकसा सकते। इस से आप के उद्द्येश्य भी पूर्ण होंगे और बच्चा भी खुश कि उसे बाहर जाने के अनुमति मिली वह भी अकेले।
हर अभिभावक का परिस्थितियों को संचालित करने का अलग नजरिया होता है। बस जरूरत है की आप का वह नजरिया आप की संतान को WORLD BEST लगना चाहिए। सामान्यतः हम उस किसी भी बात का समर्थन कर देते है जो दूसरा बच्चा कर रहा हो शायद इस लिए की दूसरे के बच्चे से हमें क्या मतलब लेकिन वही जब हमारे बच्चे पर आती है तब हम उसका विरोध करने लगते है। यही से अभिभावक और संतान के बीच क्लेश शुरू हो जाता है
अग्रगति से बदलते समाज के साथ चलने के लिए हमे अपने बच्चो की भी राय लेते रहनी चाहिए। यदि ये कहा जाये तो गलत नहीं होगा की शायद वह इस नई बदलती दुनिया को ज्यादा अच्छा समझते है। समझे पर अपनाएं अपने तरीके से। कोई भी समस्या बिना समाधान के नहीं पनपती। इस लिए समाधान आप को संतुष्ट करने वाला तलाशिये। नजरिया बच्चों का भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना आप का। और वयस्क हो रहे बच्चे तो खुद को माता पिता के बराबर ही समझने लगते है। इसे इस तरह से देखे तो अच्छा की वह परिपक्वता की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे है। लेकिन इस परिपक्वता पर वर्तमान की मुहर लगनी आवश्यक है। उन्हें ये अहसास कराते रहे की वह किस समय और समाज में है और उसकी मांग क्या है ?
जीवन में आवश्यकताओं का अहसास उन्हें खुद से होने पर पूर्ति के रस्ते आप सुझाएं। और साथ ही साथ दो चार विकल्प भी सामने रखें जिसमे से चुनने में उन्हें आसानी हो। बच्चों के नजरिये से देखें तो शायद हम अच्छे अभिभावक नहीं बन पाये है क्योकि हर बच्चा ये कहता मिल ही जायेगा की मै अपने बच्चों को देखना कैसे अच्छे ढंग से पालूँगा। जबकि उन्हें पता नहीं की उन्हें भी उसी तरह परिस्थितियों से जूझना पड़ेगा जिस में आज हम सब है। सेतु तभी निर्मित होगा जब हम प्रयास करेंगे संतान से उम्मीद सिर्फ उस पर चलने की ही लगाई जा सकती है वह भी उसकी सुविधानुसार। एक अच्छा अभिभावक बन कर ही हम एक अच्छे बच्चे की उम्मीद कर सकते हैं। इस लिए पहले खुद से ही रूपांतरण का प्रयास प्रारम्भ करें।
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संतान होने के उपरांत विवाहित जीवन किस तरह बदल जाता है इसका अंदाजा सभी को है। पर कहते है न कि शादी का लड्डू जो खाए सो पछताए जो न खाए तो पछताए। अर्थात किस स्थिति का सामना करना पड़ेगा यह उस स्थिति में जा कर ही पता चलता है। लाख कोई समझाए , शिक्षा दे या अपने अनुभव बताये सब उस समय अनुसार बेमानी हो जाते है जब स्थिति कुछ और मांग कर रही हो। क्या कभी हम ने ये सोचा है की आज हमारा बच्चा जिस स्थिति में है या जो कर रहा है उस में हमारा भी योगदान है।
यदि बच्चा अच्छा निकल जाये तो हर अभिभावक श्रेय लेने के लिए अपने पालन पोषण की गुण गाथा गाने लगते है जब की यदि बच्चा कही अनुचित करने लगता है तो घर से बाहर के माहौल को दोषी बताने लगते है। समस्या उपजती यही से है आप बाहर की स्थितियां नहीं सुधार सकते। लेकिन उन परिस्थितियों को घर में एक उचित वातावरण में उपजा सकते है। समय अनुसार बदलाव जरूरी है।आज दो पीढ़ियों में अंतर का सबसे बड़ा कारण यही बदलाव है। इस बदलाव को न चाहते हुए स्वीकार तो कर लेना पर सामने आने पर उसके खिलाफ प्रतिक्रियाएं देना एक गहरी खाई खोद देता है अभिभावक और संतान के बीच।
समाज में अपना स्तर बनाए रखने के लिए आप जिन कार्यों की आजादी अपनी संतान को देते है पहले उसे दिल से स्वीकार करें। या फिर उसे थोड़े संशोधित तरीके से स्वीकार करने के लिए प्रयास करें। उदाहरण के तौर पर …… बच्चो को अकेले पार्टी करना अच्छा लगता है जरूर भेंजे , पर यदि हो सके तो आप भी जाएँ और थोड़ी दूरी बनाते हुए आस-पास ही रहकर उन्हें अपने होने के अहसास से अवगत कराते रहें। ये भावना सुरक्षा और बंधन दोनों ही लिहाज से उचित है। उनके संगी साथी भी आप के होने के कारण उन्हें कुछ भी नाजायज करने के लिए नहीं उकसा सकते। इस से आप के उद्द्येश्य भी पूर्ण होंगे और बच्चा भी खुश कि उसे बाहर जाने के अनुमति मिली वह भी अकेले।
हर अभिभावक का परिस्थितियों को संचालित करने का अलग नजरिया होता है। बस जरूरत है की आप का वह नजरिया आप की संतान को WORLD BEST लगना चाहिए। सामान्यतः हम उस किसी भी बात का समर्थन कर देते है जो दूसरा बच्चा कर रहा हो शायद इस लिए की दूसरे के बच्चे से हमें क्या मतलब लेकिन वही जब हमारे बच्चे पर आती है तब हम उसका विरोध करने लगते है। यही से अभिभावक और संतान के बीच क्लेश शुरू हो जाता है
अग्रगति से बदलते समाज के साथ चलने के लिए हमे अपने बच्चो की भी राय लेते रहनी चाहिए। यदि ये कहा जाये तो गलत नहीं होगा की शायद वह इस नई बदलती दुनिया को ज्यादा अच्छा समझते है। समझे पर अपनाएं अपने तरीके से। कोई भी समस्या बिना समाधान के नहीं पनपती। इस लिए समाधान आप को संतुष्ट करने वाला तलाशिये। नजरिया बच्चों का भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना आप का। और वयस्क हो रहे बच्चे तो खुद को माता पिता के बराबर ही समझने लगते है। इसे इस तरह से देखे तो अच्छा की वह परिपक्वता की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे है। लेकिन इस परिपक्वता पर वर्तमान की मुहर लगनी आवश्यक है। उन्हें ये अहसास कराते रहे की वह किस समय और समाज में है और उसकी मांग क्या है ?
जीवन में आवश्यकताओं का अहसास उन्हें खुद से होने पर पूर्ति के रस्ते आप सुझाएं। और साथ ही साथ दो चार विकल्प भी सामने रखें जिसमे से चुनने में उन्हें आसानी हो। बच्चों के नजरिये से देखें तो शायद हम अच्छे अभिभावक नहीं बन पाये है क्योकि हर बच्चा ये कहता मिल ही जायेगा की मै अपने बच्चों को देखना कैसे अच्छे ढंग से पालूँगा। जबकि उन्हें पता नहीं की उन्हें भी उसी तरह परिस्थितियों से जूझना पड़ेगा जिस में आज हम सब है। सेतु तभी निर्मित होगा जब हम प्रयास करेंगे संतान से उम्मीद सिर्फ उस पर चलने की ही लगाई जा सकती है वह भी उसकी सुविधानुसार। एक अच्छा अभिभावक बन कर ही हम एक अच्छे बच्चे की उम्मीद कर सकते हैं। इस लिए पहले खुद से ही रूपांतरण का प्रयास प्रारम्भ करें।
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