स्वछंदता के मायने……… 


स्वछन्दता …………! जीवन को खुल के जीने का नाम है। पशु - पक्षी सही मायनों में स्वछंद हो कर जीने का उदाहारण प्रस्तुत करते हैं । अपनी मर्जी से उठने- बैठने, खाने- पीने ,घूमने- फिरने ,हंसने- रोने की जो आजादी ये महसूस करते हैं  वह हम नहीं कर सकते। उनको जीवन में उन चिंताओं ने नहीं घेरा है जो हमारे इर्द गिर्द सांप जैसे कुंडली मार कर बैठी रहती हैं। हालाकिं उन्हें भी अपने परिवार की चिंता , उनके लिए वर्षा से पहले भोजन जुटाने की चिंता ,घरोंदे बनाने की चिंता तो रहती ही होगी पर वह इन कार्यों को अपने जीवन के उद्देश्य समझ कर करते हैं इसीलिए वह मस्त मगन हो कर स्वछंद जीते हैं।  जबकि हम, जिसने अपने इर्द गिर्द इतनी सुविधाएँ जुटा रखी  है फिर भी अपने कार्यों को बोझ समझ निपटाते हैं। इसी बोझ तले  हम अपने खुश रहने के  नैसर्गिक व्यवहार को भी  भूल चुके हैं। ईश्वर ने जीवन का अमूल्य तोहफा इसी लिए बख्शा है की हम उसका सही मायनों में उपयोग कर अपने आस पास के वातावरण को भी जीने लायक बनायें।

                                                                                                                         स्वछंद हो कर जीना जरूरी है। पर ये स्वछँदता किसी दूसरे के लिए रोड़ा न बने ऐसा हमेशा प्रयास करना चाहिए। स्वछँदता की यह भी शर्त माननी जरूरी है की वह अपने व्यक्तित्व का मान न गिराये। क्यों कि आप का व्यक्तित्व ही आप की पहचान है। समाज के कुछ नियम और शर्ते होती हैं  इन्हे मानना समाज में रहने वाले हर उस शख्स के लिए आवश्यक है जो एक सम्मानजनक जीवन की आस रखता है। आज के  दौर में स्वछँदता की परिभाषा इतनी बदल गयी है कि सभी  सीमाओं को लांघने का प्रयास,  एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण में बाधक बन रहा  है।  हमारे सविंधान में भी आजादी के लिए अनेकों नियम रखे गए हैं पर क्या ये सही है की उन नियमों की  आड़ में हम वह करने का प्रयास करें जो समाज द्वारा स्वीकृत न हो।  आप इसे इस प्रकार समझे की पंछी के लिए स्वछंद हो कर उड़ना उसकी आवश्यकता है पर क्यों हम उसे विमान के आस पास मंडराने से रोकतें है क्युकी इस से उसे ही नहीं हमें भी नुकसान पहुँचता है। पशु पक्षी तो अपनी सीमायें नहीं जानते पर हम आप तो ईश्वर प्रदत्त बुद्धि से नवाजे गए हैं जो सही गलत का निर्णय ले सकते हैं।  हमे अपनी सीमाओं का भी अंदाजा है फिर ऐसा करना गलत न होगा क्या ?अतः स्वछंद जिए पर खुश रह कर दूसरे की खुशियों  का अवश्य ख्याल रखें। ये स्वछँदता फिर किसी को भी नहीं तकलीफ नहीं देगी और इसी से एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा।  

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