हर हाथ शक्ति ,हर हाथ तरक्की .……!
ईश्वर है। इस सत्य को हम सभी जानते है। और ये मानते भी है उसकी शक्ति से ही ये पूरा संसार चलायमान है। लेकिन जिस तरह एक माँ अपने बच्चे को जीवन का पूरा पाठ पढ़ाने के बाद उसे उसकी खुद की क्षमताओं के भरोसे छोड़ देती है। वैसे ही उस ईश्वर ने भी किया है। क्या यह सही नहीं है की सीखने के बाद पारंगता आ ही जाती है और उसे बेहतर प्रयोग करना हमारे खुद के ही हाथ है। कुछ समय पूर्व चुनावी माहौल में एक नारा प्रचलित हुआ था हर हाथ शक्ति हर हाथ तरक्की। शायद इस नारे को लिखने वाले का मकसद राजनितिक ही रहा है परन्तु इसे उस ईश्वर के सन्दर्भ में देखे तो एहसास होगा की उसने भी यही सोच कर संसार की रचना कर डाली। ईश्वर ने सर्वप्रथम आदम और हव्वा को बना कर मानव संसार गढ़ने की जिम्मेदारी उन पर डाल दी। अर्थात उन्हें ये शक्ति प्रदान की कि वह अब उसका दायित्व बांटें। यही शक्ति विभाजन इस रूप में भी नजर आता है कि एक लुहार की शक्ति हथौड़ा है जबकि एक डॉक्टर की, उसका स्टेथस्कोप , एक नाई की शक्ति उस्तरा और एक दरजी की उसकी सिलाई मशीन। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि उस औजार की ताकत उस हाथ में है जो हमे उस ईश्वर ने दिए हैं ताकि हम उसका उपयोग कर ईश्वर की ही तरह एक नई कृति को जन्म दे सके। जरूरत है उस शक्ति को पहचानने की और उसके सार्थक इस्तेमाल की। अपनी इसी क्षमता को कुछ क्रियात्मक रूप दे कर हम भी उस ईश्वर की तरह रचनात्मक बन सकते है। परन्तु जब जब मानव ने ईश्वर की बनाई रचनाओं को एक नए सिरे से बनाने या उसे बिगाड़ने की कोशिश की है तब तब वह उससे हारा है। ये सब हमें उस प्राकृतिक आपदा के रूप में नजर आता है जिस पर मानव का कोई बस नहीं। ईश्वर के सर्वेसर्वा होने का एहसास उस समय होता है जब हमारे पास असहाय हो कर प्रार्थना के अलावा कुछ नहीं बचता। जरूरत है यह समझने की कि ईश्वर की दी हुई शक्ति का सदुपयोग कर हम कैसे उसके कहर को आशीर्वाद में बदल सकते है। और उस तरक्क़ी को पा सकते है जिसकी हम चाह रखते हैं।
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