ईश्वर की अमोल देन .... प्रसन्नता 
जीवन में अनेकों कार्यों से घिरे हम निरंतर व्यस्त रहते हैं। यही व्यस्तता जीवन का सत्य है। जीवन कार्य करने और उसके परिणाम से जुड़े हानि- लाभ का नाम है।जरूरी नहीं की हर कार्य का परिणाम अच्छा ही आये फिर भी कार्य करते रहना हमारा कर्तव्य है। गीता में कहा है कि कर्म करो फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ दो  ……… इन्ही कार्यों के बीच हम रोजमर्रा की वस्तुएं इधर उधर रख भूल जाते हैं। समय पर याद न आने और न मिलने पर परेशान होते है। जिस वस्तु की जिस समय आवश्यकता होती है उसका महत्व भी उसी समय  ज्यादा रहता है। बाद में उसका मिलना एक संयोग बन कर रह जाता है। क्या कभी ये सत्य, जीवन की एक अहम वस्तु जिसे ईश्वर ने बड़े ही जतन से हर किसी के मन में संजोया है के बारे में सोचा  ………वह है प्रसन्नता। आज की इस भागम दौड़ वाली जंदगी में क्या अपनी प्रसन्नता कही रख कर भूल नहीं गए हम ?क्या कभी जतन और लगन से खोजने की कोशिश की.……… नहीं। क्योकि उसके बिना जीवन जीने की निकृष्ट कला हमने सीख ली है। सुखी होने के लिए अब हमे प्रसन्नता से ज्यादा धन की आवश्यकता है। धन की कीमत में हम वो तमाम चिंताएं ले लेते है जो वास्तविक प्रसन्नता को कही छुपा देती है। यही प्रसन्नता हमे उन कार्यों को करने का हौसला भी दे सकती है जो शायद एक समय असंभव जान पड़ते है। हौसला ऊँची उड़ान का नाम है। ये हौसला ख़ुशी से मिलता है।
                   किसी कार्य को आरम्भ करने से पहले अपनी प्रसन्नता को तलाश कर उसे आगे चलने को कहें कार्य को करने का बोझ अपने आप काम हो जाएगा।  एक मामूली सा उदाहरण प्रस्तुत है कभी पंजा लड़ाते समय या रस्सा कशी खेलते समय  खुल कर हंसने लगे तो हाथ का बल ख़त्म सा हो जाता  है कभी सोचा है क्यों ? ऐसा इस लिए क्योकि उस समय आप मन और तन दोनों से ही चिंता विहीन हो जाते है। जीवन की मस्ती का रसास्वादन करते समय शरीर मन से भी हल्का महसूस होने लगता है।ये प्रसन्नता आप के कही आसपास ही रहती है जिसे जीवन के तनाव में हम पीछे चलने को मजबूर करते है। एक सत्य यह भी है की घर में रहते हुए उसे तलाशने  हम बाहर  भटकने लगते है और बाहर की दुनिया प्रसन्नता पाने के वो सभी रास्ते बता देती है जो समाज द्वारा स्वीकार्य नहीं है। वास्तविक प्रसन्नता का भंडार आप का घर है। यही से उन तमाम रिश्तों से जुडी प्रसन्नता मिलती है जो असल में आप के है, सही और जायज है।बाहर मिली प्रसन्नता हो सकता है की आप ने धन चुका कर खरीदी हो और क्षणिक सुख के लिए आप ने एक बड़ा मूल्य चूका दिया हो। परन्तु ये सोचिये की घर में मिली प्रसन्नता का कभी कोई मोल चुकाया है क्या , जब की वो स्थाई है और अमूल्य है। शुद्ध प्रसन्नता के लिए साधनों की आवश्यकता नहीं दो परम मित्र आपस में सिर्फ चर्चा से ही परम आनंद पा सकते है। इस लिए साधन विहीन प्रसन्नता पाने का विश्वास ही आप को घर से जोड़े रख सकता है। धैर्य और लगन से प्रसन्नता को संजोये आप के पास रहकर आप को सदा खुश रखने में कामयाब होगी। जीवन की अनेकों छोटी छोटी बातों में प्रसन्नता है किसी नन्हे बच्चे को खिलखिलाता देखकर क्या मन प्रसन्न नहीं होता किसी सुन्दर पुष्प को देख कर क्या ख़ुशी नहीं मिलती  ? इसी तरह तलाशिये , बिखरी हुई  प्रसन्नता को समेटिये और मन की तिजोरी  में सदा के लिए रख लीजिये।और किसी बीमा किश्त की तरह समय समय पर उसका लाभ उठाते रहिये। ……  

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