चिंता विहीन जीवन : 😊
चिंता विहीन जीवन ……!! •••••••••••••••••••••••••
होंहीये वही जो राम रची रखा ,को करी तर्क बढ़ावे साखा। ये चौपाई आज से कई वर्षों पहले तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखी पर आज भी ये उतनी ही प्रासंगिक है। आज के भागते दौड़ते समाज में चिंता और फ़िक्र नित्य नियम से बन गए हैं। इंसान कितना भी चाहे इन परेशानियों को अलग नहीं कर सकता। इन्हीं के साथ जीते रहना उसकी विवशता सी बन गयी है। रोज एक नई चुनौती दिनचर्या का हिस्सा बनी रहती है इसी का नाम जीवन है।
★ लेकिन क्या ये जरूरी है की जिन विषयों पर हमारा कोई इख़्तियार नहीं उन्हें भी अपनी परेशानिओं में शामिल कर लें। यदि जीवन का रसास्वादन कर नहीं जिया तो क्या जिया ? हम नहीं जानते की भविष्य की गर्त में क्या छुपा है उससे हमे कैसे निपटना है। समय आने पर उसका समाधान मिल ही जाता है क्यूंकि कोई ऐसी समस्या नहीं जो सुलझाई न जा सके। जन्म के उपरांत ही किसी बालक या बालिका के विवाह की चिंता नहीं की जा सकती। उसका भी समय होता है। अर्थात कहने का तात्पर्य ये है की ऐसे बहुत से विषय है जिन के बारे में हम समय और परिस्थिति से पहले चिंता करने लगते है। ईश्वर प्रद्दत जीवन का मूल्य समझ उसे ख़ुशी ख़ुशी जीना उस परमपिता को सबसे पहला चढ़ावा है। गीता में भी यही कहा है की कर्म करो फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ दो। समयानुसार अपने दैनिक कर्मों को करते हुए उसका आभार मानो की उसने हमें मानव जीवन दे कर कृतार्थ किया। आगे उसकी इच्छा, क्यूंकि चाहे मनुष्य कितनी भी तरक्की कर ले कोई तो ऐसी शक्ति है जिसकी मर्ज़ी से यह संसार चलायमान है।जन्म के साथ ही एक मनुष्य अपना भाग्य लिखवा कर लाता है। हथेलियों और मस्तक की महीन रेखाएं उसके पूरे जीवन चक्र को निर्धारित करती है हालाकिं हम उसे समझ नहीं पाते फिर भी वही सत्य है हमारे जीवन का। खास बात यह की इन रेखाओं में समस्या के साथ उसका हल भी होता है पर ईश्वर हमारी क्षमताओं को परखने के लिए उसे तलाशने का जिम्मा हमें सौंप देता है। यही तलाश हमे सही और गलत रास्ते पर ले जाती है। यदि आप मन कर्म वचन से सही राह का चुनाव् करते है तो भाग्य भी अपने द्वार खोल कर आपका स्वागत करेगा। यदि आप गलत राह का चुनाव करेंगे तो कहीं न कहीं आप उस अनादर का पात्र बनेगें जो समाज के जरिये आप को मिलेगा। जरूरी यह है की आप अपने कर्मों के प्रति सजग और सकारात्मक रहें। जीवन के पहलुओं में सुख दुःख दोनों ही शामिल है यह आप के कर्मों पर निर्भर करता है क्यूंकि जीवन देते समय उस परमपिता परमेश्वर ने भाग्य को कर्म से इस लिए जोड़ा ताकि मनुष्य अच्छे कर्मों को करने के लिए प्रेरित होता रहे। ये सोच कर न बैठा रहे की सब तो भाग्य में लिखा है मैं अलग से प्रयास क्यों करूँ। जीवन की अनगिनत समस्याएं भी मानव को जीते रहने का एहसास कराती हैं दुःख के बाद ही सुख की सही अनुभूति होती है और दुःख में ही हमे ईश्वर के स्मरण की याद आती है इस लिए जीवन की तमाम चिंताओं को उस ईश्वर का प्रसाद समझ ग्रहण कर जीयें अपने आप रास्ते आसान हो जाएंगे।
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