सत्य का वार...........बिना हथियार ! 
जीवन का  एक महत्वपूर्ण तथ्य है वो है सत्य। संपूर्ण जीवन हम  इसी तथ्य से अनजान रहते है कि यही एक ऐसा हथियार है जिस से बिना वार किये कोई भी युद्ध जीता जा सकता है। सत्य ह्रदय में छुपा वो भाव है जिसे सामने लाने का साहस ही जीत की और पहला कदम बढ़ा देता है। सच हमेशा से पवित्र और निर्मल होता है क्योंकि उसमे किसी भी तरह की या कितनी भी मात्रा में कोई भी मिलावट नहीं होती।  जो है वही सामने आता है, चाहे आज या कल। परिवर्तन का नियम सत्य पर लागू नहीं होता सच आदिकाल तक वही रहता है। बस उसे अपनाने के तरीके बदल जाते हैं। सत्य को अपनाने का साहस हर किसी के पास नहीं होता इसीलिए हम कुछ समय बाद इस बात पर यकीन कर लेतें हैं की ऐसा करते तो शायद ये हो सकता था। सत्य के लिए ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ता  क्योंकि सत्य तो वही है जो रोजमर्रा के जीवन में आप जी रहें है। सही या गलत , अच्छा या बुरा ,होनी या अनहोनी ऐसा कुछ भी जो जीवन से जुड़ा या घटा हो वही सत्य है। उसे उसी  रूप में स्वीकार कर लेना सबसे बड़ी वीरता का काम है। आगे की कई घटनाएं या कार्य भी इसी से प्रभवित होते है की पिछला सच आपने कैसे स्वीकार किया। जीवन की अनेकों गलतियां सिर्फ एक तरीके से सुधारी  जा सकती है वह यह है की , सच को अपनाने का साहस । हम कई बार उससे दूर भागने के प्रयास में उसे और उजागर करते जाते है और खुद को चक्रव्यूह में कैद कर लेते हैं। इस चक्व्यूह में एक बार फँसने का अर्थ है जीवन भर इससे बाहर न निकल पाना। और यदि किसी तरह निकल भी गए तो समाज द्वारा उस सत्य का आइना जीवन भर देखना।  परिस्थितियां कई बार सत्य को अपनाने से रोकती हैं पर देर सवेर ही सही उसे स्वीकार लेना जीवन की सबसे बड़ी समझदारी है। 
   आप जीवन की अनेकों घटनाओं से उदाहरण ले सकते है की सच को अपनाने के साहस के बदले कितना मानसिक सुकून और सम्मान पाया है। जबकि झूठ एक ऐसा हथियार है जिससे आने वाले कल की आत्मा ही नहीं सामाजिक सम्मान भी घायल हो जाता है। ऐसा इस लिए होता है क्योकि जब भी झूठ सामने आता है वृहद और वीभत्स रूप में आता है। उसके विस्तार की कल्पना आपके मस्तिष्क और उम्मीद से परे होती है। कोई भी घटना को तुरंत उसी रूप में स्वीकार कर लेने से वो सत्य बन जाती है जबकि उसे दबा कर सामने आने से रोकने की वजह से वह झूठ में परिवर्तित हो जाती है। कहते है की सत्य और खुशबू दोनों ही छुपाये नहीं छुपती।  कभी न कभी तो सामने आ ही जायेगी। बेहतर ये हो की जिसका सत्य है वही सामने लाये। जब भी किसी और का सत्य किसी और के जरिये सामने आया है वह सत्य नहीं एक मज़ाक बन कर आया है। आप का सच दूसरों के लिए मनोरंजन का साधन भी बन सकता है। इस लिए यदि आप ही उसे उजागर करते है तो उसका रूप और मात्रा आप खुद ही निर्धारित कर सकते हैं।किसे कितना बताना है, कैसे बताना है क्यों बताना है और कब बताना है ये आप के सच के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय हो सकता है जो सिर्फ आप ही ले सकते हैं।उदहारण के तौर पर यदि परिवार का कोई सच घटनाओं के कारण सामने आने की तैयारी में हो तो उसे आप रूपांतरित कर सामने आने दे सकतें है जिस से सत्य सामने तो आया पर आप की निर्धारित सीमाओं में। एक सच अनेकों झूठ की नीँव खोखली कर देता है। अतः परिस्थितियों से ऊपर उठ कर सत्य को अपनाएं।विकास के साथ मनुष्य का इन्द्रियबोध (कॉमन सेंस ) भी बढ़ता है यही बोध करने की ताकत कभी कभी अकारण ही समाज के डर से सत्य को छुपा कर रखने को प्रेरित करती है परन्तु सबसे बेहतर ये है की उस समय आप विवेक की सुनें जो यही सही सलाह दे रहा होगा की जो है उसे उचित रूप में सामने आने दो ताकि बाद में उस का विस्तृत और विकृत रूप न देखना पड़े।  एक बार जिस ने भी सत्य की राह पकड़ ली उसने ईश्वर को तो पाया ही साथ में जिस समाज का वह हिस्सा है वहां भी अपनी खास जगह बना ली। सच और झूठ की लड़ाई में जीत हमेशा सत्य की ही हुई है और आप किस के  साथ रहना पसंद करेंगे ये आप खुद तय करेंगे। क्योंकि जीवन आप का है और उसके परिणाम भी आप को ही भुगतने हैं। बेहतर परिणाम के लिए प्रयास भी बेहतरीन हो ये जरूरी है।   
     

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