दुनिया में आने की जल्दी ,दुनिया से जाने की जल्दी.....! 
प्राकृतिक नियमानुसार माँ की कोख में बच्चा पूरे  नौं माह बिताने के बाद पूरी तरह परिपक्व होता है ताकि वह बाहरी वातावरण से अपने आप को समायोजित कर सके। कोख के नौं  माह उसके आतंरिक अंगों के विकास और उसकी क्षमताओं को विकसित करने के लिए अति महत्वपूर्ण होते है। दादी नानी के ज़माने में वह बिना किसी ज्यादा तकलीफ के समय पूरा होने के उपरांत बच्चे को जन्म देती थी। जच्चा बच्चा दोनों स्वस्थ रहकर आगे का जीवन शुरू करते थे। आज कल ये वाकया आम है की समय पूरा होने से पहले ही जच्चा को प्रसव पीड़ा प्रारम्भ हो जाती है जिस से समय से पूर्व ही बच्चे का जन्म कराना पड़ता है इस का कारण  आज का वातावरण , खानपान , कार्य करने का तरीका और चिकित्स्कीय क्षेत्र में डॉक्टरों का पेशेवर हो जाना  है। सामान्य प्रसव की जगह सर्जरी द्वारा जन्म  दिया जाना आम सी बात हो गयी है।  इसी वजह से इस के लिए जन्म तिथि ग्रह नक्षत्र आदि देख कर भी समय से पूर्व प्रसव करवा लिया जाता है। इस के बहुत से कारण  है लेकिन सोचने का विषय ये है की कोख में भ्रूण का पूर्ण विकास जीवन में शरीर को स्वस्थ्य बनाये रखने के लिए बहुत आवश्यक है। उसी का हक़ उससे छीन लेना क्या उचित है ? इसके लिए हालाँकि हम ही दोषी हैं लेकिन खामियाजा बच्चा भुगतता है। 
                                             शायद यही जल्दीबाज़ी का स्वभाव , जन्म से ही मन में उतर जाने का असर जीवन भर साथ चलने लगता है। फिर इंसान हर कार्य के लिए जल्दी करने लगता है। उदाहारण के तौर पर ……बच्चे को छोटी ही उम्र में विद्यालय में दाखिले की जल्दी ,खाना चबा चबा के खाने के बजाये जल्दी से पेट में डालने की जल्दी ,गाड़ी चलाते समय अपने गन्तव्यं स्थान पर पहुँचने की जल्दी , भले ही इस के लिए सिग्नल तोड़ना ही क्यों न पड़े या किसी दुर्घटना का शिकार ही न होना पड़े, ज्यादा से ज्यादा धनवान होने की जल्दी, भले ही इस के लिए गलत राह ही क्यों न चुननी पड़े, ऐसे अनेकों उदाहरण  गिनाये जा सकते है जो आज का युवा कर रहा है। यह ठीक नहीं है। ये जल्दीबाजी उसके भविष्य और स्वास्थय दोनों के लिए घातक है।खानपान के नियमों के प्रति जल्दीबाजी स्वास्थय  पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है जो आगे चलकर किसी बड़े रोग का कारण बन सकती है।  सड़क पर सुरक्षा नियमों में जल्दीबाजी उन दुर्घटनाओं को न्यौता देती है जिससे जीवन खतरे में पड़ जाता है। जल्दी से जल्दी धनवान बनने की जल्दी सही गलत का फर्क भुला कर उन सभी कार्यों को करने के लिए प्रेरित करती है जो समाज और कानून की नजर में गुनाह है। आखिर क्यों इस जल्दीबाजी के फेर में हम धीमेपन के स्वाद का रस भूल से गए हैं। एक सामान्य से उदाहारण से इसे जोड़िये और एक गृहणी से पूछिये कि तेज आंच पर बने या जले खाने में वह धीमी आंच पर पकने का स्वाद पाया जा सकता है क्या ? जो वस्तुएं माध्यम आंच पर पक कर स्वादिष्ट बनती है उन्हें तेज आंच क्या स्वाद दे पायेगी ?  एक निश्चित समय की आवश्यकता हर किसी को होती है। जल्दीबाजी उसके परिणाम को नष्ट कर देती है। जीवन अमूल्य है उसका महत्व तभी जान पाते है जब वह इन्ही जल्दीबाजी के चक्कर में हाथ से फिसलने लगता है। रुकिए, महसूस करिये और प्रतीक्षा कीजिये यही सत्य है पर जल्दीबाजी के फेर में जीवन को मत खोइए। धैर्य सबसे बड़ी पूंजी है, सब्र का फल मीठा होता है ……… इस पर विचार करें और खुल के निश्चिन्त जियें।  

Comments