समय व्यवस्थापन,हिम्मत और छोटा सा प्रयास ...!~~~~~~~~~~~~~~~~~~
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समय बहुत ही मूल्यवान है। जीवन का पूरी गाड़ी समय के पहियों पर चल रही  है। इतने व्यस्त होने के कारण रोजमर्रा की जिंदगी के अनेकों पहलुओं को हम अक्सर अनदेखा कर आगे निकल जाते है और बाद में पछताते है कि उस वक्त इस मसले पर ध्यान क्यों नहीं दिया। रोज के चौबीस घंटों को हमने इस तरह बाँट कर व्यवस्थित कर दिया है की किसी भी अतिरिक्त कार्य के आने पर झल्लाना या परेशान होना स्वाभाविक सा हो गया है।  रोज की दिनचर्या बाधित करने वाला कोई भी कार्य नागवार सा गुजरता है।यदा कदा जो विषय आप की तवज्जो चाहते हैं उनकी अवहेलना कर के दिनचर्या के अनुसार समय का व्यवस्थापन  कर लेना कहाँ तक उचित है। रोजमर्रा के जीवन में इसी समय की कमी का खमियाजा हम भुगतते है जब किसी विषय के खिलाफ आवाज उठानी हो और ये सोच कर चुप रह जाएँ कि कौन इतना समय बर्बाद  करे।  यही समय बचाने की इच्छा ने आज व्यभिचार और भ्रष्टाचार को इस तक बढ़ावा दे दिया है। हर कोई एक लम्बी प्रक्रिया से बचने हेतु चुप बैठना बेहतर समझता है। किसी खरीदी वस्तु का ख़राब होना ,किसी कार्यालय में सुनवाई न होना ,किसी अधिकारी का संतोषजनक व्यव्हार न करना ,या समाज के किसी भी पहलु का अमर्यादित होना सभी में चुप रह कर या बच कर निकल जाना एक आदत सी बन गयी है।   जरूरत है एक प्रयास की। कभी कभी एक प्रयास अन्य कई लोगों को प्रोत्साहित करने का कार्य करता है।  आप शुरुआत तो करें , पीछे मुड़ कर देखेंगे तो  एक दो ऐसे लोग साथ मिल ही जायेंगे जो खुद भी इस त्रासदी से गुजर चुके होंगे। शायद हिम्मत की कमी उन्हें भी इस प्रयास से रोक रही हो। 
        आज RTI के ज़माने में जरूरत है एक पहल की। समय की कमी का रोना उन लोगो को बढ़ावा दे रहा है जो अनैतिक कार्य करने का हौसला रखने लगे है। सब मिल कर कोशिश करें कम समय में ज्यादा बुलंद प्रयास का निष्कर्ष सामने आएगा। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता ……… लेकिन इसके विपरीत अकेला प्रयास कई दबी छुपी हिम्मतों  को सामने ले आएगा। समय का व्यवस्थापन जरूरी है पर उससे जीवन के दूसरे महत्वपूर्ण कार्य प्रभावित हों ये तो सही नहीं है अन्याय या असंतोष के खिलाफ आवाज उठाना नैतिक अधिकार है और इसकी अवहेलना नहीं की जानी चाहिए। समय की पाबन्दी का रिश्ता इस व्यवस्था से भी हो की कुछ भी गलत या अनुचित होता देख पाबंद हो जाएँ की इसके प्रतिकूल जा इसे समाप्त करने का प्रयास करना है। अनदेखा करने की यही आदत एक दिन स्वभाव बन कर हमे कुचलने लगती है।  क्योंकि तब हमें दब कर ,घुट कर, सहम कर जीने की आदत पड़  जाती है।  हम अकेले कुछ भी करने या बोलने से डरने लगते है। इसे स्वाभाव नहीं बनने देने का सबसे अच्छा रास्ता है कि हर परिस्थिति को सही या गलत परख कर उसके लिए आवाज उठाएं। सही के साथ समर्थन और गलत के साथ विरोध का स्वर ऊँचा रखें। हो सकता है की कोई आप से प्रेरणा ले रहा हो। इंटरनेट के ज़माने में ये काम और भी आसान हो गया है घर बैठे कही से भी किसी के भी खिलाफ परिवाद दाखिल किया जा सकता है। प्रयास करें और इस जनतंत्र में अपनी  पहचान इस रूप में बनाएं की अन्याय और असंतोष के खिलाफ खड़े हो सकने का साहस आप में है।  मन में इच्छा हो तो समय अपने आप ही आप के पक्ष में खड़ा रहेगा ,लड़ाई में और न्याय दिलाने में .............  
             

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