अनदेखा मरहम ...........
किसी बालक के लिए उसके विद्यालय में उसका पहला परिचय अक्षर ज्ञान से होता है। इसी अक्षर ज्ञान से उसे शब्द और इन्ही शब्दों से उसे वाक्य बनाना आता है। इन्ही वाक्यों के माध्यम से वह समाज में संवाद कायम करता है। संवाद एक दूसरे तक अपनी बात कहने और उनकी सुनने का जरिया है। और हाँ इन्ही संवादों के बेहतर प्रयोग से वह किसी साक्षात्कार में सफल भी हो सकता है। अर्थात कहने का तात्पर्य यह है की हम जिन भी शब्दों को बोलते और सुनते है वह हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालते है। फिर भी हम बोलते समय यह ध्यान रखना भूल जाते है की हमारे शब्द किसी की भावनाओं को आहत भी कर सकते है। कहते है की.............. कमान से निकला तीर और जबान से निकली बात घायल जरूर करते है। शब्दों को अगर मनोवैज्ञानिक रूप में समझने की कोशिश की जाए तो यह मरहम का काम करते हैं। यदि आप किसी चिकित्सक के पास जाए तो आप सबसे पहले यह ही उम्मीद करगें की वह आपकी तकलीफ समझें और आप से सहानुभूति से पेश आएं। यही कोशिश आप का आधा रोग दूर कर देती है। इसी तथ्य को जीवन में उतारने की कोशिश क्यों न की जाए ? ऐसा कठिन भी नहीं की आप जो भी बोले मीठा बोले …………सत्य है ना, एक यही ऐसी कोशिश है जिसमें अपना कुछ भी खोये बिना बहुत कुछ पाया जा सकता है। आज मानव की पहली आवश्यकता धन हो गया है उसके प्रयास और समय दोनों ही ज्यादा से ज्यादा धन प्राप्ति में जा रहें है। ऐसे में यह सोचने का विषय है की क्या मीठा बोलना या दूसरे को अपनी वाणी से खुश कर देना आप के धन संग्रह को कम करता है आप अपने दूसरे प्रयासों के साथ अगर इसे भी साथ ले लें तो शायद नहीं यक़ीनन आप का कार्य और व्यवहार दोनों का यश बढ़ेगा। किसी अपने के दुखी होने पर जब शब्दों से उसके घावों पर मरहम लगाने का प्रयास करते हो ,तब वह अमृत सा कार्य करता है। यह अमृत ईश्वर ने सब को दिया है बस हम उसे सही जगह और सही वक़्त पर प्रयोग करना भूल जाते हैं। कटु वचन सिर्फ आहत ही नहीं करते बल्कि आप के आस पास के उन सब रिश्तों को भी आप से दूर कर देते है जिन से ही आप का समाज बनता है। किसी भी विद्यालय में बालक को यह नहीं सिखाया जाता की उसे शब्दों का चयन कैसे करना है यह आप के खुद का चुनाव है। और इसी चुनाव में महारथ हासिल करने वाला व्यक्ति जीवन की हर बाधा को पार करने में सफल हो सकता है।
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