सामाजिक दोषों की विषहरण औषधि……… परिवार !
संसार का हर मनुष्य एक दूसरे से अलग है शरीर की बनावट से , अनुवांशकीय गुणों से और आदतों से।   ईश्वर ने मनुष्य की रचना करते समय उसमे कोई न कोई विशेषता जरूर डाली है। ये उसे अपने माता पिता के जरिये अनुवांशकीय प्राप्त होती है। जन्म के पश्चात उन्ही गुणों के सहारे वह बड़ा होता है। यही गुण छोटे बच्चे का मन पवित्र और कोमल रखती है। खेलते कूदते बड़े होते बच्चों के लिए ये विशेषताएं आगे का रास्ता बनाती हैं। भविष्य में वह क्या करें क्या बने और किस राह पर चल कर अपना लक्ष्य प्राप्त करें यह सब ये गुण और विशेषताएं तय करती हैं। लेकिन इन सब से अलग जैसे जैसे समाज के बीच रह कर बच्चा बड़ा होता है ये विशेषताएं दोषों में बदलनें लगती है। ये सामाजिक दोष अतिव्यापी होते है जो सरलता से उन सारे गुणों को ढक लेते है जो हमे नैसर्गिक रूप में प्राप्त होते हैं। 
                   अब सोचना यह है की जन्म से मिले गुण जो की शायद रक्त के साथ शरीर में बह रहें हैं उनका प्रभाव समाजिक जीवन के आगे निरुत्तर क्यों हो जाता है। समाज की आवश्यकता हर किसी को है और उस में रहने के लिए उसका पालन भी अनिवार्य है। पर यह जरूरी नहीं की अपने गुणों और विशेषताओं को त्याग कर उनके मानदंड अपनाएं जाएँ। प्रभाव का कम या ज्यादा होना हमारे व्यक्तिगत समझ और ग्रहण करने की इच्छा पर निर्भर है। सामाजिक दोष समय के साथ साथ बच्चे को भले लगने लगते है क्योंकि वो आपको बाहर  से मिल रहे है। और घर से बाहर की हर वस्तु का आकर्षण कही ज्यादा होता है। मुहावरा है न की …घर की मुर्गी दाल बराबर। घर में पका शुद्ध और चटपटा भोजन भी ठेले -खोमचे की चाट का मुकाबला नहीं कर सकते। बड़े होते बच्चों के सामने आजकल इतने विकल्प मौजूद है की चुनने के लिए उन्हें माता पिता की मर्जी की जरूरत नहीं है उस के लिए बाहरी लोग ही काफी है। एक विज्ञापन की लाइन है की अच्छी आदतों की अहमियत केवल एक माँ ही समझ सकती है ……शिशु को जन्म देने के बाद से ही माँ उसे तराशने का कार्य करने लगती है पर इस कार्य पर विराम तब लगने लगता है जब शिशु सामाजिक दोषों के संपर्क में आने लगता है। 
                         इस समस्या से निपटने का एक उपाय है वह ये की परिवार को शिशु की पहली प्राथमिकता बनाने का प्रयास करें।  एक निश्चित समय तक बच्चे को हर आवश्यकता के लिए परिवार की सहायता मिलती रहनी चाहिए। उसे उसके मित्र और संगी साथियों से जुड़ने दे पर उनका प्रभाव निरंतर कम करने के लिए बेहतर संवाद कायम रख उसके अंदर झांकते रहे और बाहर से आने वाले विष का असर कम करते रहें।  हालाँकि इस विष हरण औषधि का सेवन उनके लिए आसान नहीं होगा। पर जैसे मरीज को दवा कभी शक्कर के साथ या कभी पेय में मिला कर देते है।  उसी तरह उन्हें भी उस माहौल , उन बातों या उन धारणाओं के प्रति धीरे धीरे विमुख करना हमारी जिम्मेदारी है।  हर अभिभावक का यह फर्ज है कि जो माहौल बच्चा बाहर तलाश रहा हो उसे वह घर में दे कर रोका  जाए। ताकि उस जहर की मात्रा और किस्म में बदलाव किया जा सके। उन विशेषताओं की ओर उसे मोड़ा जाये जिन के सहयोग से वह अपनी जिंदगी की दिशा तय कर सकता है। देखें  तो सभी मशहूर हस्तियों  के परिवार ने ही उनके गुणों को जान कर ,उन्हें समय और सहायता दे कर आज उन्हें शीर्ष पर बैठाया है। इस लिए उनकी दिशा और दशा का निर्धारण हम परिवार के साथ करें और उन्हें उनकी जन्मजात विशेषताओं के साथ फलने -फूलने दे.    
        

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