प्यार की भाषा …………!
किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच संवाद कायम करने का माध्यम है भाषा। ये भाषा अपने देश , अपनी संस्कृति ,अपनी जाति के अनुसार अलग अलग होती है। इसी भाषा के माध्यम से हम अपनी बात दूसरे तक आसानी से पहुंचा सकते है। अनगिनत भाषाओँ का ज्ञान इसी लिए आवश्यक है की आप संवाद कायम करने में समर्थ हो जाएँ। पर इन सब से अलग एक भाषा ऐसी है जो बिना संवाद के एक मन से दूसरे मन तक बात पहुंचा देती है। वह है प्रेम या प्यार की भाषा। आप अपनी भावनाओं के जरिये इस भाषा को व्यक्त कर दूसरे को अपने मन की बात बता सकते हो।  इस भाषा के लिये शब्दों की आवश्यकता नहीं होती।  कई बार क्रिया कलापों से या देखने भर से इस भावना की अभिव्यक्ति  हो जाती है। ये एक अकेली ऐसी भाषा है जिसे देश दुनिया की सरहदें बांध नहीं पायीं क्योंकि मन से मन तक पहुँचने वाली ये भाषा शब्दों की मोहताज नहीं।किसी तक अपने प्रेम की भावनाएं पहुँचने के लिए इस भाषा के कई रूपों को आजमाया जाता है। जैसे उसे कोई तोहफा देकर ये जताना की आप उसकी पसंद नापसंद का ख्याल रखते है ,तकलीफ में उसके साथ खड़े रहना जिससे वह खुद को अकेला न समझे , उसकी रुचियों  में रूचि दिखाना ,उसके आस पास रहने के लिए प्रयासरत रहना , रिश्ते की कद्र में अपनी अकड़ किनारे रख हमेशा झुके रहना जैसे अनेकों कार्य है जो भाषा बन कर वह सब कहने लगते है जो शायद जबान नहीं कह पाती।
         प्यार की भाषा ही सही मायनों में किन्ही दो लोगों को एक मजबूत रिश्ते में बाँधे रखती है। जब तक सही मायनों में यह प्यार मन में दूसरों की जगह बनाये रखता है तब तक रिश्ता प्रेमपूर्वक चलता रहता है। इस लिए इस भाषा का उन्माद बनाये रखना चाहिए। जिस से परिवार रिश्तेदार दोस्त सभी इस भाषा के जरिये जुड़ाव महसूस करते रहें। जब बिना कुछ बोले या व्यक्त किये , यहाँ तक की बिना मिले भी इस भाषा के जरिये आप दूसरों को खुश कर सकते हैं। तब देर क्यों ? आज भागते दौड़ते समय में जरूरी नहीं की सभी से मुलाकात का समय निकला ही जा सके। पर इस भाषा का प्रयोग करें और सभी अपनों को अपने करीब बनाये रहें। इन कई तरीकों में से जो भी बेहतर लगे चुनाव करें और अपनी भावनाओं का विस्तार करें। आज कल इंटरनेट  के ज़माने में तो सब कुछ और भी सुलभ होता जा रहा है। नेट के जरिये कुछ भी मंगवा कर, किसी को भी, कही भी भिजवाया जा सकता है। जिस के मिलते ही आप के कुछ न कह पाने की स्थिति में भी मन की बात सामने आ जाएगी। यदि आप करीब रह कर रिश्ता संजोना चाहते  है तो उसके लिए भी बिना कहे उसके ख़ुशी ग़म में सहयोग बनाये रखे। ये याद जीवन भर साथ चलती है की उस समय उसने साथ दिया। प्यार की भाषा ही है की माँ की छाती से लग कर बालक सुरक्षित और संतुष्ट महसूस करता है। माँ के स्पर्श भर से बच्चे को प्रेम का अहसास हो जाता है। कभी कभी ये स्वभाव  में आ जाता है की हम खुल कर अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं करते  जिस का परिणाम रिश्तों की दूरियां हो जाती हैं। अतः इन छोटे छोटे उपाय को अपना कर और इस अव्यक्त भाषा के जरिये रिश्ते को पुनर्जीवित किया जा सकता है। वैसे भी आज कल व्यस्तता के कारण और एकाकी परिवार के चलन के उपरांत अनेकों रिश्ते इतने ज्यादा दूर हो गए है की एक दूसरे की ख़ुशी गम का भी पता नहीं चलता। इस भाषा के प्रयोग से उन्हें करीब लाने का अवसर ईश्वर ने खुद आप को दिया है क्योंकि ये भाषा उसी ईश्वर की बनाई है जिसे हम और आप परिवर्तित और रूपांतरित रूप में प्रयोग कर रहें है। मंदिर जा कर आप मन ही मन बहुत कुछ कहते सुनते है प्रसाद भी चढ़ाते है ये सब उसके प्रति अपना प्रेम ही तो है। उस से मिलने जाना ,  उसके लिए प्रसाद के रूप में तोहफा ले जाना ,उस से अपने दिल की बातों का आदान प्रदान करना ये सब हम और आप प्रभु के साथ भी तो करते है।  ये भाषा उसी की देन  है जिस ने ये सब कुछ बनाया है उसकी इस देन  का सम्मान करते हुए अपने सभी रिश्तों को संजोएं। तरीका चाहे जो हो , भाषा चाहे कोई भी अपनाएं,  पर आपसी प्रेम को बनाये रखें।  
           

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