मिटटी के चूल्हे पर सिकती गर्म सोंधी रोटियां और ताजे पिसे मसाले की खुशबू वाली सब्जी साग
दादी नानी की रसोई में धीमी आंच पर पकती खीर या कढ़ी के स्वाद का मुकाबला बड़े से बड़ा होटल का पञ्चरत्नी खाना भी नहीं कर सकता। उस खाने में प्रेम और सहनशीलता का जो मिश्रण डाला जाता था वह आज की व्यस्त जिंदगी में कही खो सा गया है। आज सिर्फ ,जल्दी और सब कुछ बहुत जल्दी ……………आधुनिकता और जल्दीबाजी का असर व्यक्ति के जीवन के दैनिक क्रिया कलापों पर ही नहीं उसके खान पान पर भी पड़ा है।अब जल्दी और तुरत फुरत वाली रसोई के चक्कर में मध्यम आंच पर बनने वाला स्वाद और व्यंजनों के नाम भी भूल गए है । सब कुछ क्षणिक मिलने की आस ने इस instant वाले concept को इतनी अधिक हवा दे दी है। हालाँकि ये एक पुराना सत्य है की fashion खुद को दोहराता जरूर है। जिस तरह आज पुरानी फिल्मों से प्रभावित हो कर उसी तरह के कपड़ों का चलन होने लगा है। उसी तरह पुराने खाने का जादू भी हम से अलग नहीं हो सकता। हो सकता है की उसे modified रूप में प्रस्तुत कर थोड़ा आकर्षक बनाने का प्रयास करते है पर उस व्यंजन की आत्मा वही पुरानी वाली ही होती है।आज जो भी instant व्यंजन चलन में आये है वह सभी nutritional value में बहुत ही कमजोर साबित हुए है। पर खुद को आधुनिक और प्रगतिशील दिखाने की चाह में हम उसे जरूर खाते है। उदाहारण देखिये ....... जब बच्चे ढंग से खाना नहीं खाते थे तो दादी नानी ने नया नुस्खा निकाला , रोटी के बीच में सब्जी और चटनी रख उसका चोंगा बना कर हाथ में पकड़ा देती बच्चा घूमते फिरते खा लेता। आज यही चोंगा frankie का रूप ले चुका है वही सब्जी, वही चटनी और वही सलाद पर इस व्यंजन के लिए हम काफी रुपये खर्च करने को तैयार रहते हैं। इसी तरह माँ ने कई बार छौंके हुए चावलों पर सब्जी डाल कर पकड़ाया है और हम टहलते घूमते खा लेते थे। आज वही rice bowls का नाम ले कर आप के सामने है। आलू के चिप्स का चलन काफी पहले से ही है पर उसके लम्बे पतले टुकड़े काट कर उसे french fries का नया नाम दे कर एक बार फिर आप को आकर्षित किया गया।वजह नया नाम ,नया रूप और आकर्षक प्रस्तुतीकरण।
mcdonald's ,subway , pizza hut, kfc , domino's .burger king , in and out ,wendy's ,dunkin donats ,taco bell जैसी अनेकों फ़ास्ट फ़ूड एजेंसी गिनाई जा सकती है जिन्होंने खाने पीने की आदतों को बदल कर स्वास्थ्य के प्रति बिलकुल नकारात्मक रवैया बना दिया है। हालाँकि जब भी इन सस्थाओं के व्यंजनों की लिस्ट पर नजर डालें उन्ही पुराने व्यंजनों को नए तरीके से पेश कर भारी कमाई करते देखा जा सकता है। पर हम उसे घर में खाने के बजाये बाहर खाना ज्यादा पसंद करते है वजह है उसका आकर्षक प्रस्तुतिकरण। नए ज़माने में जी रहे हो तो खाने पीने का भी ढंग बदल कर नया होना जायज है पर उसके लिए स्वास्थय के साथ समझौता जायज नहीं है। आज की युवा पीढ़ी इसी तरह का फ़ास्ट फ़ूड खाना पसंद करती है।एक तरह से देखा जाए तो इन food corners ने हमारे बच्चो को addict बना दिया है जिस से वही व्यंजन घर पर बेस्वाद और बाहर बहुत ही मस्त नजर आता है। लेकिन इस मस्ती की चाह ने उन्हें उनके स्वास्थ्य के प्रति संवेदनहीन बना दिया है। इन खानों का इस तरह आदी होने का खामियाजा सिर्फ स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि जेब भी भुगतती है।ऐसा नहीं की माएँ अपने बच्चों के लिए पकाने से कतराती हैं पर पैसे खर्च कर दोस्तों के साथ बाहर खाने का लालच उन्हें खींच कर ऐसी जगहों पर ले जाता है। युवा पीढ़ी को निशाना बना कर इन्होने एक अच्छा साम्राज्य स्थापित कर लिया है। घर का बना स्वच्छ ,स्वस्थ और स्वादिष्ट खाना अपने सादेपन की वजह से पीछे रह गया है उसमे वह ताम -झाम नहीं रहता जो ये corners आकर्षित करने के लिए करते या लगाते हैं।
आयुर्वेद और डॉक्टर दोनों ही एक सलाह देते है की आप की थाली तिरंगी होनी चाहिए जिसमे हरी पत्तेदार सब्जी ,काली-पीली दाल ,चावल , सलाद , हरी या लाल चटनी जैसे items होने ही चाहिए। ये तिरंगी थाली जितने देखने में सुंदर होगी उतनी ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी संपन्न होगी। जीवन लंबा और सुरक्षित होगा ये हम ही तय करेंगे। अपनी जीवनचर्या से और अपने खानपान से। कहते है की सुंदरता देखने वाले की आँखों में होती है न कि वस्तु में , उसी प्रकार स्वाद ढूंढेंगे तो जरूर मिलेगा। मेरे विचार से प्रस्तुति से ज्यादा स्वाद और भावना महवपूर्ण होती है जो सिर्फ घर के ही खाने में मिलेगी। माँ भी तो सबकी पसंद का ख्याल रख कर ही भोजन पकाती है फिर अरुचि का प्रश्न क्यों पैदा होता है ? अपने रुझान को बदले देंखे खुद का स्वास्थय और घरेलु सम्बन्ध दोनों ही मजबूत होंगे। स्वस्थ भविष्य के लिए वर्तमान को व्यवस्थित करना आवश्यक है।
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